समकाल में दमच

samkal mein damach

सत्यव्रत रजक

सत्यव्रत रजक

समकाल में दमच

सत्यव्रत रजक

मेरी इच्छा-सूची में कोई विज्ञापन नहीं है

किसी सन-फ़्लावर से छुई धूप

या लाल अमरूद की जड़ पानी में डूबती छाया नहीं है

रेलगाड़ी का धुआँ उक्ति है

किसी दुर्दिन से निकलने के लिए

बिल्ली की तरल आँख

बड़ी शांति से खाता है अभिनेता

आँसू-गैस शांतिपर्व पर सहभागिता से बाँटी जाती है

हम उस फूल से वाक़िफ़ थे

जो हमारा तुम्हारा ‘मैं’ तोड़कर

पराग में महकता है

मैंने तोड़-फोड़ के उपरांत

कुल उपेक्षित शांति

लज्जित क्रोध नहीं त्यागा

मुझे तुम्हारी गुलाबी नज़र

मुझे तुम्हारी गला काटती सड़क

कुआँ पाटती आदत

गुलगुली होती ‘ही ही’ नहीं चाहिए

अब कि साँय बिना चमगादड़ की चर्रा जाती है

अब कि सुबह बिना कौआ की उतर आती है

जानवर और आदमी की संधि के लिए

ज़रूरी होने लगी है एक आदमी और एक आदमी की सहमति

अब कि ज़मीन पर कभी भी मौत सकती है बेपैर

हत्या की सारी सुविधाएँ सुरक्षा के विशेषण बन गईं

अब कि हो जाए अब से पार

हमें उसकी उँगली में गहराती स्याही पहचाननी होगी

उसकी काँख में सुस्ताता तिल ढूँढना ही होगा

एक बिल्ली को बचाने के लिए

खंडित उदास चेहरे की मोम पिघलानी होगी

नाख़ून पर गर्म भंगिमा हेतु

बचाकर रखना होगा साँप सीढ़ी का सौवाँ अंक।

स्रोत :
  • रचनाकार : सत्यव्रत रजक
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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