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भादों की संध्या का जब

bhadon ki sandhya ka jab

कृष्ण मुरारी पहारिया

अन्य

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कृष्ण मुरारी पहारिया

भादों की संध्या का जब

कृष्ण मुरारी पहारिया

और अधिककृष्ण मुरारी पहारिया

    भादों की संध्या का जब, रवि ने शृंगार किया

    मैंने और नदी ने उसका सोना लूट लिया

    मेरा सोना आँखों से मन की कोरों तक पहुँचा

    वहाँ इकट्ठा होकर सपनों के छोरों तक पहुँचा

    किंतु नदी ने अपना सोना, बादल को सौंपा

    चमकीले बादल ने, तरू के शिखरों पर थोपा

    बगुले किरणों के पानी में तैरे, ख़ूब पिया

    तोते बियाबान से उड़कर बस्ती तक छाए

    सोने की वर्षा की गाथा घर-घर कह आए

    चाय घरों में लोग बंद थे, बहसों के मारे

    एक दूसरे को ठहराते डाकू-हत्यारे

    ख़ुश थे कहकर—हमने संघर्षों के बीच जिया

    स्रोत :
    • पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 80)
    • रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
    • प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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