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ज़िद मछली की

zid machhli ki

इला कुमार

अन्य

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इला कुमार

ज़िद मछली की

इला कुमार

और अधिकइला कुमार

    समुद्र के रास्ते से आता है सूरज

    सूर्य

    जो उदित होता है सीना चीरकर

    बादलों का

    धप्प से गिर जाता है सागर की गोद में

    गोद भी कैसी

    आर पार कहीं और छोर दीखता नहीं

    एक सुबह अलस्सबेरे जागी हुई

    छोटी-सी मछली

    मचल गई देखेगी वह

    सूरज का आना

    तकती रही रह-रहकर

    दुऽप्प्...! दुऽप्प्...! सतह से ऊपर

    बार-बार

    जान नहीं पाई

    कब और कैसे सूरज उग पड़ा

    ज़िद मछली की

    ज़रूर देखेगी वह जाना सूरज का

    आख़िर

    घूम-फिरकर आएगा थक कर

    खुली-खुली अगोरती बाँहों में

    सागर के

    शाम की लाली तले एक बार फिर

    दप्प् से कूद गया सूरज

    समंदर की अतल गहराइयों में

    जाने कितने कालखंडों से तैर रही है

    वही मछली

    दिग्भ्रमित

    युग-युगांतरों अतल तल को

    अपने डैनों से कचोटती

    क्या जान पाएगी कभी

    ख़ुद ही है

    वह सूरज और सागर भी

    बादलों के पार स्थित

    निर्द्वंद्व आकाश में उद्भूत

    अनन्य महाभाव भी

    स्रोत :
    • रचनाकार : इला कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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