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सिनेमा

sinema

हरिओम राजोरिया

और अधिकहरिओम राजोरिया

    सिनेमा की बात चलने पर

    दाँत मिस-मिसाने लगते पिता

    सिनेमा उनके लिए एक बुरा स्वप्न था

    बच्चों के बिगड़ने की फुल गारंटी

    जिस दोस्त के साथ सिनेमा देखने भागता

    उस दोस्त के पिता नहीं थे

    दोस्त माँ के साथ किराना दुकान पर बैठता

    हिसाब-किताब और दुकानदारी की

    बहुत व्यवहारिक समझ थी उसके पास

    सिनेमा की रंगीन दुनिया हमें अपनी ओर खींचती

    और मौक़ा हाथ लगते ही

    हम सिनेमाघर की तरफ़ भागते

    दुकान और स्कूल के बाद मित्र थका होता

    पर उसकी जेब में पर्याप्त पैसे होते थे

    सिनेमा की दो-तीन रील निकलने के बाद ही

    कुर्सी पर सिर लटका कर वह सो जाता

    मैं सिनेमा के साथ उसे सोता हुआ देखता

    सिनेमा में सिनेमा के तरह के सुख-दुःख थे

    जो बहुत अलग से थे हमसे

    सिनेमा का संसार सिनेमा का संसार था

    जहाँ मारधाड़ थी अन्याय का प्रतिकार था

    प्यार, घृणा, अहंकार, रोना-धोना, चीत्कार

    जो बहुत अलग था पर हमें रोमांचित करता था

    हम जो सचमुच के भय के साथ रहते थे

    सिनेमा के आरोपित भय से भयभीत नहीं होते थे

    सिनेमा ने हमें नए तरह से

    सपने देखना सिखाया

    सिनेमा का गाना और नाचना देखकर आते

    तो थोड़े-थोड़े हम भी रंगीन हो जाते

    हम सिनेमा की कहानी को

    अपनी तरह से पकड़ते

    और स्कूल के दोस्तों को अपनी तरह से सुनाते

    सिनेमा से लौटकर मैं पिताजी के थप्पड़ खाता

    पर सिनेमा के जादू के सामने

    उनकी पिटाई को कुछ कमतर ही पाता

    सिनेमा के अंत में जब राष्ट्रगान बजता

    तो मैं दोस्त को एकदम से जगा देता

    उसे लगता चलो एक काम पूरा हुआ

    रास्ते भर मैं उसे छूटी हुई कहानी सुनाता

    दोस्त ज़िंदगी से भले ही हारा हो

    पर नींद के आगे हार जाता

    सिनेमा देखने का अपूर्व उत्साह

    ठीक से देख पाने की हताशा में बदल जाता

    जितने तेज क़दमों से हम सिनेमा पहुँचते

    उतनी ही धीमी चाल से घर को लौटते।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरिओम राजोरिया
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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