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फ़ारूख़ शेख़ जैसा लड़का हो, दीप्ति नवल-सी लड़की

farukh shekh jaisa laDka ho, dipti nawal si laDki

सुशोभित

सुशोभित

फ़ारूख़ शेख़ जैसा लड़का हो, दीप्ति नवल-सी लड़की

सुशोभित

फ़ारूख़ शेख़ जैसा लड़का हो,

दीप्ति नवल-सी लड़की!

लड़का रुपए में बारह आने शरीफ़,

लड़की आटे में नमक जित्‍ती नकचढ़ी

लड़का नाप-तौल कर बोले,

लड़की ज़ुबान से कान काटे

लड़का दानिशमंद, लड़की हाज़िरजवाब

लड़का सादी क़मीज़ और घेर वाली पतलून पहने,

लड़की छींटवाली सूती साड़ी

लड़का कनटोपे सरीखे बाल रक्‍खे,

लड़की सिर नहाए तो नहीं बाँधे चोटी

छुट्टी के दिन दोनों बाग़ में मिलें

घुटने जोड़कर बैठें

धीमे से, मुँह ही मुँह बतियाएँ

लड़का हाथ बढ़ा लड़की के कंधे पे रखे,

लड़की के कान की लवें ललाएँ

धूप में खिड़की सरीखी लड़की की पारदर्शी मुस्‍कुराहट

कान के सफ़ेद मोती में झिलझिलाए।

हरी घास का बित्‍ता दूर जहाँ दमके,

लड़की की आँखें वहीं जमी हों

लड़का अपलक देखता रहे लड़की का एकटक निहारना

यूँ निरापद दूर देखने का उद्यम

जो क़ुरबत की तस्‍वीर हो।

लड़के की पुस्‍तक, लड़की का पर्स धरा रह जाए बेंच पर

लड़की का हाथ हौले-से लड़के की दाहिनी बाँह छुए

लड़के की अँगुलियाँ चश्‍मे की कमानी से खेले,

जो अभी इंद्रधनुष बन गया है उसके हाथों में।

और, उसकी हथेलियों पर

पसीने का एक पेड़।

तसल्‍ली हो, फ़ुरसत हो

शऊर हो, नफ़ासत हो

कहीं जाने की जल्‍दी हो,

कुछ पाने की वहशत हो

खो देने का गुमान तो दूर तक नहीं

दरमियाँ कोई ख़लल हो

दूध-मिश्री-सा दोनों का मन हो

शरबती शाम हो

रात की साँवली किनार हो,

दुपट्टे की दुपहर से खुलती।

फ़ारूख़ शेख़ जैसा लड़का हो,

दीप्ति नवल-सी लड़की।

स्रोत :
  • रचनाकार : सुशोभित
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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