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चिलिका

chilika

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

शशांक चूड़ामणि

अन्य

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और अधिकशशांक चूड़ामणि

    आए हो अगर

    तो देख लो

    कैसे जल रहा

    स्मृति का दीप

    टिमटिमाता दीप

    पहाड़ पर

    कैसे जल रही समय की बत्ती

    मन की बैठकी पर

    देखो, अब मैं घायल हूँ!

    मुझे छू रहा

    नित्य माफ़िया का मन।

    छूने के हाथ बहाई हैं

    झूठमूठ काग़ज़ी नौकाएँ

    श्वेत श्याम घोड़ों की टाप

    सुनाई नहीं पड़ती

    यहाँ दूध-दही के बदले

    मिलता है ज़हर

    अब झूठ का महल

    बन गया है पाटशाणीपुर

    आए हो यदि मुझे लौटा दो

    मेरा अतीत

    मेरे पैसों की ख़ान, वणिक का जहाज़

    दो माँग के लिए जहाज़ भर सिन्दूर

    देह के लिए सिहराती हवा

    मन के लिए झलमलाता चाँद

    मेघों से ढाँप लो

    मेरे उजड़े स्तन

    आए हो यदि देख लो

    कैसे बिसूरता जटिया

    कहाँ गए मेरे कंगोद कुँवर

    प्रिय कविगण मेरे

    बगदाद की तरह

    निश्चिन्त उनके मन का सपना है

    अब सूनी मेरी नाभि की तरह

    नलबल का बंद है मुहाना

    आए हो यदि एक बार

    एक दो आलिंगन मेरे ख़ून शरीर को

    सजा दो मेरे घने केश

    फूल-सा जूड़ा बना दो माथे पर

    एरा, पांडा, वक और मराल

    कौन्दा मछली की तरह

    दाग दो मेरे मन को

    अपनी लेखनी की तरह

    परत-दर-परत

    अपने शब्दों के चुंबन में

    कर दो मुझे एकदम मदहोश

    मेरी देह में अब ना उठे कभी

    अहंकार की नील लहरें

    सुनाई देता रहे

    डोंगे वाली का गीत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 313)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : शशांक चूड़ामणि
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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