छियासठ

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दर्पण साह

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दर्पण साह

जीवन का होना स्थिति का 'तनावपूर्ण किंतु नियंत्रण में' होना है।

मृत्यु को विश्राम स्थल कहना

दरअस्ल, उससे भयाक्रांत रहना है

सुना है इसके भय से लोगों को आत्महत्या करते

मैंने पूछा जब एक जीवित व्यक्ति से ये प्रश्न

जीवित एक मृत की भाँति मौन था

किंतु फिर मृत व्यक्ति ने मुझे बताया

“मृत्यु वर्तमान है

होना है

मृत्यु जीवन नहीं

उसका प्रतिपक्ष

उसकी पूरक ही।”

उसने बताया मुझे

“हम कभी नहीं मरते

क्योंकि जो मरता है

—वो हम नहीं

और कभी हम मरे

—तो हम नहीं।”

मृत व्यक्ति

मृत होकर भी

मृत्यु को नकार रहा था

स्पष्टत: वह झूठा था

किंतु उतनी ही सच्ची थी उसकी बात

एक जीवित व्यक्ति के लिए मृत्यु

अभी से ठीक अगला पल है

जो सबसे निकट होते हुए भी

अनंत दूरी पर है

जीवित रहते हुए मृत होना

इस पल में रहते हुए आने वाला पल जीना है

हम अधिक से अधिक मृत होने का प्रयास कर सकते हैं

और देख लेना यूँ कहीं मध्य में अटक जाएँगे

सदा सर्वदा के लिए

स्टिल...

पॉज...

मुझे लगता है

त्रिशंकु और कुछ नहीं

आत्महत्या का प्रयास है

जो मृत्यु से सबसे नज़दीक होते हुए भी

हमारे ही बराबर दूर है उससे

और किंतु दूर है वर्तमान से भी

मृत्यु का कोई भी प्रयास

किसी ब्लैक होल से गुज़र करके

ख़ुद के दादा-दादी को

अपने जन्म पूर्व ही मार डालने का प्रयास है

ज़ेन गुरु जान चुके थे ब्लैक होल का रहस्य

इसलिए उन्होंने पूछा स्वयं से

“मेरे दादा के जन्म से पूर्व मेरा चेहरा कैसा दिखता होगा?”

वे जान चुके थे ब्लैक होल

वे जान चुके थे मृत्यु और वर्तमान के बीच लटके त्रिशंकु को

किंतु की नहीं जान पाए मृत्यु

अतः मृत हो चुकने के ऐन पहले

(अर्थात् उनके वर्तमान में)

उन्होंने कहे ये अंतिम शब्द

“सवेरा होता है और पंछी घोसलों से उड़ने लगते हैं।”

स्रोत :
  • पुस्तक : लुका-झाँकी (पृष्ठ 37)
  • रचनाकार : दर्पण साह
  • प्रकाशन : हिन्द युग्म
  • संस्करण : 2015

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