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छाया मत छूना मन

chhaya mat chhuna man

आशुतोष दुबे

अन्य

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आशुतोष दुबे

छाया मत छूना मन

आशुतोष दुबे

और अधिकआशुतोष दुबे

    कोई था समुद्र में जो ऊपर उड़ते पक्षी की छाया को जकड़ लेता।

    जब तक पक्षी को अपनी लापता छाया के बारे में पता चलता,

    रात हो जाती। रात भर छाया की स्मृति पक्षी के दुःस्वपनों में फड़फड़ाती।

    अगली सुबह सूरज अपनी दी हुई छाया के बारे में पक्षी से दरियाफ़्त करता।

    इस डर से पक्षी सूर्योदय से पहले ही इस छाया को पाने के लिए समुद्र

    पर फिर लौटता। पानी के भीतर उड़ान भरते पक्षी को जलचर अचरज से देखते।

    उसकी व्यग्र तलाश से द्रवित होकर आख़िर समुद्र उसे अपने (अ)

    तल में ले जाता जहाँ असंख्य छायाएँ लहरों की थपकियों में अपना दुख भूलकर

    सोती रहतीं। वहाँ इतनी छायाएँ होती कि पक्षी के लिए अपनी

    छाया ढूँढ़ना असंभव होता। छाया के बिना आकाश में लौटना तो और भी

    असंभव।

    अंततः थका हुआ पक्षी इन छायाओं के बीच सो जाता।

    उसके पंख पानी में घुलते रहते। उसकी देह विसर्जित होती

    रहती। वह अपनी छाया पाता जाता। वह अपनी छाया होता जाता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : यक़ीन की आयतें (पृष्ठ 101)
    • रचनाकार : आशुतोष दुबे
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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