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चरित्रहीनता : चार

charitrhinta ha chaar

संदीप रावत

संदीप रावत

चरित्रहीनता : चार

संदीप रावत

हर एक चीज़ की प्रकृति में एक अलविदा है

अलविदाएँ कभी ख़त्म नहीं होतीं

शायद वे कभी शुरू नहीं हुईं

मैंने बरसों ख़ुद को बादल देखना सिखाया

उस सीख का रंग आसमानी है

धुँध में जलते चराग़

हवा में उड़ते हुबाब

और पानियों के किनारे

सिर्फ़ कुछ याद दिलाने

और अलविदा के लिए होते हैं

तुम्हारी आँखें

मेरी किताबों के सारे शब्दों को मिटा देती हैं

मैं जितना मिटता जाता हूँ तुम्हारी आँखें

उतनी गहराती जाती हैं

मुझमें एक ख़ामोशी तुम्हारे आँसुओं को

चंद्रमणि-सा धारण किए हुए है

मेरी कोई कहानी नहीं सिर्फ़ कभी ख़त्म होने वाली एक कविता है

जो हर बढ़ते शब्द के साथ सूक्ष्म होती जा रही है

और मेरी हड्डियाँ हैं

जिन्हें रात में अचानक मेरी माँ के जोड़ों का दर्द झकझोर देता है

बहुत गहरी ख़ामोशी के ख़ज़ाने से

रात एक कुत्ते की क़ीमती आवाज़

शीशे की तरह

चमकती है

बिखर जाती है…

मैं यहाँ इन ख़ामोशियों में

किन आवाज़ों का बोझ ढो रहा हूँ?

जबकि अलविदा हर आवाज़ का गुणधर्म है

पत्ते शाखों पे आकर यूँ मुस्काते हैं

जैसे पहले यहाँ कभी आए हों

इक शाख रिक्तता से यूँ भर उठती है जैसे

पहली बार कोई स्त्री हामिला हुई हो

पतझर अपनी सारी ख़ाली टहनियों को

मेरे दिल को सौंप देता है और

हवा सूखे पत्तों को पूरी पृथ्वी सौंप जाती है

पत्तों पर चलते हुए एक राहविहीनता

एक अलविदा मुझे पकड़ लेती है और मैं

एक पुनर्मिलन से भर उठता हूँ

पत्तों भरी पृथ्वी अनकहे के एकांत का दर्पण है

मैंने बरसों ख़ुद को रात की आवाज़ सुनना सिखाया

उस सीख का कोई रंग नहीं!

स्रोत :
  • रचनाकार : संदीप रावत
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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