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चैत्र जाते-जाते

chaitr jate jate

अनुवाद : चक्रेश्वर भट्टाचार्य

अमियचरण गोहाँई

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अमियचरण गोहाँई

चैत्र जाते-जाते

अमियचरण गोहाँई

और अधिकअमियचरण गोहाँई

    जीवन के पत्र में

    बहुत चैत्र आते हैं

    तप्त श्वास से

    मरण झरकर

    चैत्र सर्वदा रहता है।

    हमारी वसुमती एक आग है।

    उससे छाई हुई

    धुआँ उठ-उठकर

    जला हुआ जंगल उड़ाकर

    अंगार के श्वास लेकर

    तूफ़ान आते हैं

    सूखे खेत में हँसते हैं खिलखिलाकर

    व्यस्त, उन्मत्त, माताल।

    चैत्र की संध्या में छाए, भस्म लगे हुए

    हम संन्यासी हैं,

    मुक्ति-पागल हैं

    (राजपथ की अलेख धूल-मिट्टी)

    हम रातें बिताते हैं

    जीवन की नीरसता के बीच में

    तप्तता के बीच

    पचे झरते हैं-पत्ते झरकर गिरते हैं

    चैत्र जाते-जाते

    ‘मेबेली’ लता प्रस्फुटित होगी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 7)
    • संपादक : विरिंचिकुमार बरुवा द्वारा चयनित
    • रचनाकार : अमियचरण गोहाँई
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1956

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