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चार

chaar

शिवकुटी लाल वर्मा

अन्य

अन्य

और अधिकशिवकुटी लाल वर्मा

    आकाश रुक गया था

    पक्षी भी रुक गए थे

    गलियाँ सहमी हुई थीं

    और सड़कें चलते-चलते जैसे जम गई थीं

    फूल खिलते-खिलते रुक गए थे

    और पेड़ों में नई पत्तियाँ उग रही थीं

    और पुरानी झड़ रही थीं

    आवाज़ों में तेजी आने के बजाए एकरसता थी

    और रोशनी में चमक के बजाए एक ऐसा फीकापन

    जिसे पहिचानने की भी अब कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी

    कहीं कोई भूचाल था

    कहीं कोई दुर्घटना

    माथे का पसीना तक गिरते-गिरते थम गया था

    (पर मैं चल रहा था, निरंतर चल रहा था)

    अचानक मैंने पाया कि सब

    एक साथ ही चल पड़े

    आकाश, पक्षी, सड़कें, गलियाँ सभी चल पड़े

    रोशनी चमकीली होती गई

    और आवाज़ें तेज़

    फूल मौत का डर छोड़कर

    पूरी तरह खिलने को आतुर हो गए

    पेड़ों ने पुरानी पत्तियाँ अस्वीकार कर दीं

    और नई पत्तियों के साथ हिल-मिल गए

    भूचाल भी आने शुरू हुए

    और नित्य नई दुर्घटनाएँ भी होने लगीं

    माथे पसीने से तरबतर हो गए

    और दिल जज़्बातों से सराबोर!

    सचमुच यह सब कुछ इतना अनहोना था

    कि मैं अब एकदम ठहर गया था और अपने भीतर

    इसे देख पाने की

    ताक़त इकट्ठी कर रहा था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पहचान सीरीज़, खंड : दो (पृष्ठ 487)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : शिवकुटी लाल वर्मा
    • प्रकाशन : सेतु प्रकाशन
    • संस्करण : 2023

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