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चचरी पुल

chachri pul

मोहन राणा

अन्य

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मोहन राणा

चचरी पुल

मोहन राणा

और अधिकमोहन राणा

     

    गिरींद्रनाथ झा के लिए

    टिकोला से लदल गर्मियाँ पार करती हैं चचरी पुल
    मटमैले पानी में जा छुपा दिन अपने सायों के साथ,
    किसी को तो बुहारना ही है दैनंदिन घमासान में विफल आश्वासनों को
    थोड़ा तो आदर मिले वरना आशाएँ अवाक रौंदी ही जाएँगी कीचड़ सने जूतों तले
    चिपकती घिसटती कर्कश अनसुनी अनदेखी पंखा झेलती मक्खियों की भिनभिनाहट

    नीली स्याही के धब्बों में हमारी स्मृतियों के डी. एन. ए.
    आत्मरिक्त शब्दों की तरह काग़ज़ों पर 
    जो गल नहीं पाए बहती मरी मछलियों की तरह
    क्या वे कभी जान पाईं वे पानी में रहती थीं
    फिर भी रह गईं प्यासी

    लिखे जाएँगे जो दुपहर के अँधेरे से सिक्त
    कहे जाएँगे अर्थ नए अभी कभी
    लुप्त होती लिपियों में रेत होते
    मैं उन्हें ही पढ़ता हूँ बार-बार
    जैसे कुछ याद करते कभी का छूटा

    उस क्षितिज तक पहुँचते
    टिका रह पाएगा क्या मंथर बहाव में
    यह दो किनारों और हमेशा एक छोर का चचरी भ्रम,
    अश्वत्थामा मुझे मालूम है तुम कहाँ छुपे हो

    स्रोत :
    • रचनाकार : मोहन राणा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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