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हुनर

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सारुल बागला

अन्य

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और अधिकसारुल बागला

    दिमाग़ को खोखला करता हुआ यह

    और मेरा धूसर द्रव्य ज़हर में तब्दील होता जा रहा है

    जब तुम यह सवाल करोगे कि

    उस सुबह मैं किसके लिए जाग रहा था

    तो ऐन उस वक़्त मेरे वजूद की हत्या होगी

    दुहराया जाएगा जिसे दुहराने के ख़ौफ़ से

    पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने से भी नहीं घबराया

    जिसकी ऊब से मैं पच्चीस साल की अंतहीन ऊब से भी नहीं ऊबा।

    शब्दों को इतना ख़ौफ़नाक कभी नहीं पाया था

    कि वे मेरी जान लेने पर आमादा होंगे

    और मुझे बम की तरह बरतने होने अपने ख़िलाफ़ अपने शब्द

    कि बस वक़्त की मियाद है और फिर वक़्त की मियाद नहीं है।

    यह क्या है—

    अजीब लिजलिजेपन से भरा हुआ दिन

    जिसे तुम्हारी फ़िक्र है और मेरी

    और अजीब वहशत का मारा मैं

    बस ख़ुद को क़त्ल करने का हुनरयाफ़्ता

    दिमाग़ी बीमारी का बोझ ढोता हुआ कीड़ा

    जो काटता है भीतर

    तो जानता भी नहीं कि अपना कितना ख़ून पी चुका है।

    हाँ, मैं पैदा हुआ हूँ—वहशत के बीच

    बड़ा हुआ हूँ एक ज़ाती दुश्मनी और हौलनाक अज़ीयत में।

    वो दिन और आज का दिन

    सुबह मेरा ख़ून पी रही है

    मेरी नब्ज़ डूब-डूब कर ऊब चुकी है

    और अफ़सोस इसको भी मुहब्बत के हिसाब में जोड़ा जाना है।

    इससे बेहतर कोई हिसाब नहीं हो सकता

    कि मेरा हिसाब छोड़ कर लोग मुस्कुरा दें

    और कह दें कि तुम्हारा हिसाब करना ही बेहतर है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सारुल बागला
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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