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बोझिल और कोमल

bojhil aur komal

ओसिप मंदेलश्ताम

अन्य

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ओसिप मंदेलश्ताम

बोझिल और कोमल

ओसिप मंदेलश्ताम

और अधिकओसिप मंदेलश्ताम

    बोझिल और कोमल दो बहनें

    हैं दोनों की पहचान एक-सी

    भौंरे और ततैये पीते हैं गुलाब रस

    मरते मनुज गर्म रेत ठंडा पड़ता है

    कल का सूरज काले स्ट्रेचर के ऊपर आज लदा है

    भारी जालों कोमल फंदों का

    दुहरा देना नाम कठिन है

    इससे तो आसान उठा लेना पत्थर है...

    इस दुनिया में मेरा केवल एक प्रयोजन—

    एक सुनहरा लक्ष्य रहा है

    काल-भार से कैसे निज को मुक्त करूँ मैं

    ऐसे पीता हूँ मैं बदबूदार हवा

    मानो यह काला जल हो

    फेंक दिया है खोद समय को

    भू गुलाब है

    और प्यार ने आहिस्ता से

    भारी और कोमल गुलाब ले

    कोमलता और भारीपन को

    दुहरी माला में गूँथा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 89)
    • रचनाकार : ओसिप मंदेलश्ताम
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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