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सितंबर : 1903

sitambar : 1903

सी. पी. कवाफ़ी

अन्य

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सी. पी. कवाफ़ी

सितंबर : 1903

सी. पी. कवाफ़ी

और अधिकसी. पी. कवाफ़ी

    अब इतनी तो,

    इजाज़त दो मुझे छलनाओं से ख़ुद को छलने की

    ताकि भुला सकूँ अपने छूँछे जीवन को।

    इतनी बार इतने क़रीब जा कर भी

    में क्यों इतना शूल हो गया और भीरू हर बार

    क्यों मेरे होंठ खुल पाए

    क्यों छूँछा जीवन मेरा भीतर मेरे रोया किया

    क्यों मेरी लालसाएँ मातमी लिबास पहने रहीं हर बार?

    इतनी बार इतनी क़रीब जा कर भी

    माशूक़ की आँखों और होंठों के

    उस जिस्म के जिसके ख़्वाब लिए

    जिसके मैं क़रीब गया इतनी बार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 92)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : सी. पी. कवाफ़ी
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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