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भरोसा

bharosa

बाबुषा कोहली

अन्य

अन्य

 

लोर्का की 'आदिला' के लिए

वो पेड़ थी 
उसने लकड़हारों पर भरोसा किया
वो चिड़िया थी
उसने शिकारियों पर भरोसा किया
वो काग़ज़ थी
उसने दीमकों पर भरोसा किया

काश!
इस बात का अंत किया जा सकता 
किसी सुंदर बात के साथ
जैसे कि वो नाव थी और उसने नाविक पर भरोसा किया

मगर कथा कहती है
कि वो एक लहराती हुई रंगीन पतंग थी
सखी पतंगों के साथ छेक लेना चाहती थी अनंत का टापू
मनाना चाहती थी उड़ान का उत्सव
वो प्रेम करती आकाश से
चाँद की टहनी पर अटकना चाहती थी
मुक्त चाल उसकी
अपनी राह गढ़ती टेढ़ी-मेढ़ी

पर पतंग थी वो 
उसने काँच सने माँझे वाली दूसरी पतंग पर भरोसा किया

स्रोत :
  • रचनाकार : बाबुषा कोहली
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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