चट्टान को तोड़ो वह सुंदर हो जाएगी

chattan ko toDo wo sundar ho jayegi

केदारनाथ सिंह

केदारनाथ सिंह

चट्टान को तोड़ो वह सुंदर हो जाएगी

केदारनाथ सिंह

चट्टान को तोड़ो

वह सुंदर हो जाएगी

उसे और तोड़ो

वह और, और सुंदर होती जाएगी

अब उसे उठाओ

रख लो कंधे पर

ले जाओ किसी शहर या क़स्बे में

डाल दो किसी चौराहे पर

तेज़ धूप में तपने दो उसे

जब बच्चे आएँगे

उसमें अपने चेहरे तलाश करेंगे

अब उसे फिर से उठाओ

अबकी ले जाओ किसी नदी या समुद्र के किनारे

छोड़ दो पानी में

उस पर लिख दो वह नाम

जो तुम्हारे अंदर गूँज रहा है

वह नाव बन जाएगी

अब उसे फिर से तोड़ो

फिर से उसी जगह खड़ा करो चट्टान को

उसे फिर से उठाओ

डाल दो किसी नींव में

किसी टूटी हुई पुलिया के नीचे

टिका दो उसे

उसे रख दो किसी थके हुए आदमी के सिरहाने

अब लौट आओ

तुमने अपना काम पूरा कर लिया है

अगर कंधे दुख रहे हों

कोई बात नहीं

यक़ीन करो कंधों पर

कंधों के दुखने पर यक़ीन करो

यक़ीन करो

और खोज लाओ

कोई नई चट्टान!

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 115)
  • संपादक : परमानंद श्रीवास्तव
  • रचनाकार : केदारनाथ सिंह
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 1985

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