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बैलाडीला

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उदय प्रकाश

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उदय प्रकाश

बैलाडीला

उदय प्रकाश

और अधिकउदय प्रकाश

     

    कुछ दिनों बाद

    आज सत्ताइस अप्रैल के आस-पास
    फिर बूट बज रहे हैं...

    आज सत्ताइस अप्रैल के बिल्कुल क़रीब
    बारूद बचा हुआ है...

    मुझे अपने परिवार के साथ
    इस हाहाकार से बचने के लिए 
    कल यानी
    अट्ठाइस अप्रैल की नींद चाहिए...

    सिर्फ़ थोड़ी-सी नींद
    बिल्कुल ज़रा-सी
    थोड़ी-सी साँस जिसके अँधेरे में
    मैं अपने बच्चे के साथ सो सकूँ।

    अट्ठाइस अप्रैल को ऐसा नहीं होगा
    जैसा आज सत्ताइस अप्रैल को है
    सत्ताइस अप्रैल का कुछ भी नहीं 
    बचेगा
    अट्ठाइस को।

    अट्ठाइस महान अप्रैल है
    बड़ा नया विशाल गरुड़ ध्वज
    प्रजातंत्र...
    बहुत फ़र्क़ है।

    अट्ठाइस अप्रैल में आदमी
    परिवार के साथ ज़िंदा रह सकता है
    बस सकता है 
    टहल सकता है
    यूँ ही-सा कुछ

    आज सत्ताइस को
    प्रार्थना है—प्रभु! इन
    सारी तारीख़ों को क्षमा कर देना
    तारीख़ें नहीं जानतीं
    वे क्या कर रही हैं...

    यह प्रार्थना-प्रभु!
    कपास का सफ़ेद फूल है
    लाल रक्त में भीगता हुआ।

    सत्ताइस अप्रैल एक प्रार्थना है

    अट्ठाइस अप्रैल कपास का फूल है—
    सत्ताइस के ख़ून से लिथड़ कर
    बाहर निकलता हुआ।

    आज बारूद बचा हुआ है
    हत्याएँ बची हुई हैं
    मुझे अपनी आँख, दिमाग़
    और परिवार के लिए।
    कल की नींद चाहिए।

    थोड़ी-सी,
    बिल्कुल ज़रा-सी।

    मेरा बच्चा आख़िरकार
    कपास के फूल से बने गद्दे में
    सोना चाहता है—
    अप्रैल उन्नीस सौ अठहत्तर की
    सत्ताइसवीं तारीख़ को।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवि ने कहा (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : उदय प्रकाश
    • प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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