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अपने दुख मा ना दुखी केहू

apne dukh ma na dukhi kehu

अनुज नागेंद्र

अनुज नागेंद्र

अपने दुख मा ना दुखी केहू

अनुज नागेंद्र

अपने दुख मा ना दुखी केहू, तोहरे दुख मा खुसियाली बा।

दुनिया कै रीत निराली बा।

येहि दुनिया मा हम देखि लीन ना केहु अब कहुकै सगा अहै।

बस आपन काम बनावइ का हर मनई साथे लगा अहै।

जेहका जौनइ मन भाइ गवा अपनी मू लइ भगा अहै।

बिसुवास केहा तौ जानि लेह्या कि सोरह आना दगा अहै।

जेतनै देखै मा सीधा जे, ओतनै बड़ा पिचाली बा।

दुनिया कै रीत निराली बा।

हम जेहकै-जेहकै भला कीन, वोहसे-वोहसे फल पाइ गए।

केहु लाठी लेहे बेड़ान खड़ा, केहु-केहुसे गारी खाइ गए।

केहु बनतै काम चहेंट लिहिस, हम भितरे मा ओलियाइ गए।

केहु कहिस कि ससुरा पागल आ, वोहका बेकूफ़ बनाइ गए।

एहसान के मानय? कहैं कि ओहकै कामैं फकटदलाली बा।

दुनिया कै रीत निराली बा।

बिसुवास करा कुछ चाव नहीं कलजुगहा रिस्ता-नाता मा।

भाई से भाई लड़त-मरत, मुँह फुलउल बेटवा-माता मा।

अँगने मा बाटइ कटाजुज्झ, पटकी कै पटका हाता मा।

जेहका देखा निरदोस 'अनुज', सब ढूँढ़य दोस विधाता मा।

सभ्यता नाउ कै चीज कहाँ, बस बात-बात मा गाली बा।

दुनिया कै रीत निराली बा।

अँगनेन मा बिछलाइ परे हम,

रही गोड़ के नीचेन काई।

काव करी? कउनी मू जाई?

घर कै हालत एतनी खस्ता।

कतौ सूझय एक्कउ रस्ता।

रही परिसथित सब बेकाबू।

परा रहेन खटिया पै बाबू।

नन्हवारेन से रहे टहलुआ।

दौड़त-भागत घिसिगा तलुआ।

बहिन, भाय, भइने, बहनोई।

केहकै-केहकै करनी रोई।

यार-दोस्त सब मिलेन लुटेरा।

इनके बीच गये हम पेरा।

जब तक मन भा हाँड़ चिचोरेन।

बीच भँवर मा हमका बोरेन।

उल्टा हमरै करैं बुराई।

काव करी? कउनी मू जाई?

बड़ी बहिन कै हाल बताई।

ओनके उप्पर बिपदा आई।

दुर्घटना मा मरिगें जीजा।

तौ हमार जिउ बहुत पसीजा।

सोचे एनका जाए उबारा।

एक रोटी कै दीन सहारा।

तीन गदेल साथ मा दीदी।

स्रोत :
  • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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