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कला का पहला क्षण

kala ka pahla kshan

मनमोहन

अन्य

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मनमोहन

कला का पहला क्षण

मनमोहन

और अधिकमनमोहन

    कई बार आप

    अपनी कनपटी के दर्द में

    अकेले छूट जाते हैं

    और क़लम के बजाय

    तकिये के नीचे या मेज़ की दराज़ में

    दर्द की कोई गोली ढूँढ़ते हैं

    बेशक जो दर्द सिर्फ़ आपका नहीं है

    लेकिन आप उसे गुज़र जाने दें

    यह भी हमेशा मुमकिन नहीं

    कई बार एक उत्कट शब्द

    जो कविता के लिए नहीं

    किसी से कहने के लिए होता है

    आपके तालू से चिपका होता है

    और कोई नहीं होता आस-पास

    कई बार शब्द नहीं

    कोई चेहरा याद आता है

    या कोई पुरानी शाम

    और आप कुछ देर

    कहीं और चले जाते हैं रहने के लिए

    भाई, हर बार रूपक ढूँढ़ना या गढ़ना

    मुमकिन नहीं होता

    कई बार सिर्फ़ इतना हो पाता है

    कि दिल ज़हर में डूबा रहे

    और आँखें बस कड़वी हो जाएँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : ज़िल्लत की रोटी (पृष्ठ 14)
    • रचनाकार : मनमोहन
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

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