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अपूरणीय

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अमन त्रिपाठी

अमन त्रिपाठी

अपूरणीय

अमन त्रिपाठी

रेलगाड़ियों की घोषणा में

जितनी बार भी तुम्हारे शहर का नाम आता है

मैं सोचता हूँ, क्या ऐसा नहीं हो सकता

कि हर रेलगाड़ी तुम्हारे ही शहर को जाए

और मैं कहीं भी जाऊँ

तुम्हारे शहर ही पहुँचूँ

लेकिन इस तरह तो उस पर अचानक

एक बहुत अविश्वस्त भीड़ भी टूट पड़ेगी

मैं उस शहर से बहुत प्यार करता हूँ

और जानता हूँ कि उस शहर की भी

तुम्हारी तरह अपनी ढेर सारी दिक़्क़तें हैं

यह मैं कभी नहीं चाहूँगा

कि मेरी एक रूमानी-सी इच्छा की वजह से

तुम दोनों की परेशानियाँ और बढ़ जाएँ

लेकिन ज़रा सोचो तो

तुम्हारे शहर से मेरे शहर को भी

कई रेलगाड़ियाँ चलती हैं

और मैं समझता हूँ कि ऐसी उन्मादी इच्छा

तुम नहीं करोगी कि इस समय की सारी रेलगाड़ियाँ

मेरे ही शहर को आने लगें

अगर तुम उनमें से किसी एक में भी बैठकर

सको मेरे शहर

तो कितनी ख़ुशी फैल जाएगी चारों ओर

कितनी शांति कितनी तरलता कितनी स्निग्धता

देखो न! अगर तुम जाओ

एक बार को भी मेरे शहर…

कितनी समृद्धि!

स्रोत :
  • रचनाकार : अमन त्रिपाठी
  • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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