Font by Mehr Nastaliq Web

अनुपस्थिति

anupasthiti

स्मिता सिन्हा

अन्य

अन्य

स्मिता सिन्हा

अनुपस्थिति

स्मिता सिन्हा

और अधिकस्मिता सिन्हा

    कुछ ख़ास नहीं बदलने वाला

    जो मैं छोड़ आऊँ

    कुछ अधधुले जले बर्तन

    खुले नल के नीचे सिंक में यूँ ही

    गंदे कपड़े पड़े रहें वाशिंग मशीन में

    एक दो तीन तीन दिनों तक

    नहीं कुछ नहीं बदलने वाला

    जो बारिश में भीगते रहें सूखे कपड़े

    सूखते रहें वहीं रस्सी पर पड़े-पड़े

    रोटियाँ अकड़ जाए खुले कैसरॉल में

    गैस पर चढ़ा दूध उबल-उबलकर नीचे फ़र्श तक फैलता रहे

    और दरवाज़े पर स्विपर बजाता रहे कॉलबेल लगातार

    पंखे बल्ब यूँ ही फ़िज़ूल जलते रहें

    चलती रहे फ़ुल वॉल्यूम में टी.वी.

    कबूतरों का इंतज़ार बना रह जाए

    पड़ा रह जाए डिब्बे में उनका देना

    गिरता रहे धूप में झुलस कर तुलसी का मंज़र

    और बस ऐसे ही

    एक उगता हुआ दिन ढलती हुई शाम में बदल जाए

    हाँ, कुछ ख़ास नहीं बदलने वाला

    जो अपने आस-पास के हर दृश्य में अनुपस्थित हो जाऊँ मैं

    अव्यक्त रह जाऊँ मुझे संदर्भित कहे सुने जाने वाले हर शब्द में

    भले ही अनदेखे रह जाए सब सपने

    या कि फिर से अधूरी छूट जाए बच्चन की आत्मकथा

    जालों में अटके पड़े मकड़ों

    और छिपकली की कटी दुम को हिलता देखकर

    चाहे कितना ही चीख़ें-चिल्लाएँ दोनों बच्चे

    मैं बस सोती रहूँ अपनी नींद में

    इन सबसे होकर बेख़बर

    और अपनी दोनों आँखों को फाड़े

    बेबस से देखते रहें घर के मंदिर में बैठे ईश्वर

    मेरे पीठ पीछे फैली सारी सिलवटों को...

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्मिता सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए