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अलविदा से पहले

alawida se pahle

बलिहार सिंह रंधावा

अन्य

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बलिहार सिंह रंधावा

अलविदा से पहले

बलिहार सिंह रंधावा

और अधिकबलिहार सिंह रंधावा

    अरी नदी

    तेरे गोरे उजाले में

    बैठ के हमने

    घूँट भर पी ली...

    एक घूँट के बदले

    अरी भोली

    तुम्हें सौ-सौ सिजदे कर बैठे!

    अरी नदी...

    तुम नीचे बहती

    गर्दन झुकी हुई क्यों

    उठने दो संदेश

    रोष के

    मिली हैं

    गर्म हवाएँ...!

    अरी नदी....

    महक हमारी

    बिखर रही

    तेरे रूप का

    चढ़ता पानी

    हाथ लगाते ही

    तुम ज्यों मर जाती!

    अरी नदी...

    हम गंधविहीन

    अब दूर कहाँ

    जा ठहरें...!

    जिन राहों से

    सूरज बुझ गए

    वे पथ

    कहाँ से पाँवों को दें...!

    अरी नदी...

    नखरों ने तेरे

    पंछी बहुत

    बहकाए

    कटी जीभ वाले

    बन बैठे

    चोंच कहाँ

    लहराएँ...!

    अरी नदी...

    करतल स्वर पाकर

    पड़ी उड़ानें भरनी...

    कटे-कुतरे पंखों के

    पक्षी

    किसकी मौत

    मरेंगे...?

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 407)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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