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अधूरी हर चीज़

adhuri har cheez

नवीन सागर

अन्य

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नवीन सागर

अधूरी हर चीज़

नवीन सागर

और अधिकनवीन सागर

    कोई बहुत क़रीब से गुज़रा है

    क़रीब अनंत दूरी के पार से इतने पास है

    कि मैं दूसरी तरफ़ से अनंत के पार से

    बहुत पास गया हूँ

    एक बिंदु में सारी दूरियों का रहना

    सब कुछ का बहुत पास रहना है

    उसी में बहुत बड़े उलझाव की सरलता

    जलरंग का हिलता हुआ अबोध बिंब

    सन्नाटे में घुलता हुआ

    कोई कण बिंदु वग़ैरह नहीं

    एक सपने की बहती हुई विस्मृति है

    यह मैं कौन हूँ

    जो समझ में आने वाले ख़याल को

    बहुत प्यार करता है

    और जो समझ में आने वाले ढंग से

    व्यक्त करता है

    यह कैसी कल्पना जिसमें विचार का भार

    जगह-जगह निरस्त है

    जगह-जगह रह जाती है अधूरी

    हर चीज़

    मेरे और मेरे बीच से दोनों तरफ़ की

    दूरियों का क़रीब गुज़रता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जब ख़ुद नहीं था (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : नवीन सागर
    • प्रकाशन : कवि प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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