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आदमकद

adamkad

प्रियंकर पालीवाल

अन्य

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और अधिकप्रियंकर पालीवाल

    मेरी कविता का

    विषय है महानगर का

    एक आदमकद व्यक्तित्व

    जिसके भीतर ज़िंदा हैं

    खेत-खलिहान-चौपाल

    एक पुश्तैनी घर और चौबारा

    यानी अजनबी चेहरों की भीड़ नहीं

    समस्याओं से जूझता गाँव सारा

    उसके अंदर बहती है स्नेह की गंगा

    वह आस्थाओं का विशाल बरगद है

    कि उसकी छाया तले

    हर व्यक्ति निरापद है

    शहर के आवरण वाले लिफ़ाफ़ों में

    वह अकेला पोस्टकार्ड है

    जिसे आप बेखटके बाँच सकते हैं

    स्वजन एक-दो का नहीं

    हर खासो-आम का

    सुख-दुःख जाँच सकते हैं

    जिस दिन उस व्यक्ति के

    भीतर का गाँव मर जाएगा

    वह शख़्स मेरी कविता का

    विषय नहीं रह जाएगा

    ज़िंदगी की भेड़चाल में

    जो बच्चों-सी

    ख़ालिस हँसी हँस सकता है

    कामरूप को पछाड़ने वाली

    इस मायानगरी में

    पारदर्शी बना रह सकता है

    वह बदलेगा कैसे?

    आसमान भी छू ले

    वह आदमी

    दो को 'दू' ही कहेगा

    दुनिया लादना चाहेगी

    उस पर अपना अभिजात्य

    वह खुली किताब की तरह रहेगा

    आइए

    इस आलोकवाही सूर्य को

    सम्मान दें एक विदा गीत गाएँ

    और सूर्य के ऐसे ही

    उगते रहने के विश्वास के साथ

    अपने घर जाएँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : वृष्टि-छाया प्रदेश का कवि (पृष्ठ 20)
    • रचनाकार : प्रियंकर पालीवाल
    • प्रकाशन : प्रतिश्रुति प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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