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आग नहीं लगा सकता मैं

aag nahin laga sakta main

अनुवाद : खड़कराज गिरी

वीरभद्र कार्कीढोली

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वीरभद्र कार्कीढोली

आग नहीं लगा सकता मैं

वीरभद्र कार्कीढोली

और अधिकवीरभद्र कार्कीढोली

    उफ्, विफल रहा

    तुम्हारी महिमा गाकर तुम्हें आकर्षित करने

    वह धुन है मेरी ही सृजना

    प्रस्फुटित मेरे ही अन्तःकरण से

    जो भी समझो अब इसे

    चीत्कार, आक्रोश, रोदन, वेदना जो भी

    विक्षिप्त हो चुका है मनोभाव

    कोमलता को भी लूट लिया

    लोगों ने धड़ल्ले से।

    देखो, यह धारा अश्कों की

    लेकर अँजुरी में नियति पी रहा हूँ।

    यह कैसी कविता रचकर

    रट रहा हूँ स्वयं, और

    अपनी कविता अपने को ही

    अर्थबोध करवा रहा हूँ।

    आग लगी है मनोजगत में ही

    कोई नहीं आया

    इसे बुझाने

    वेदनाओं को छिपाकर तुमसे

    मोहित करने वाले गीत गा नहीं पाऊँगा

    ख़ुशी से, मन से...

    भीख माँगने को प्रेरित करे

    ख़ुशी के

    कंगाल हैं जब सब दाता ही

    पता नहीं, रोने के लिए हँस रहा हूँ

    या हँसने के लिए रो रहा हूँ!

    मत पूछो फिर चलने को

    आग लगी है, पता तो है तुम्हें भी

    समझ सके तुम भी

    दिल को पिघलाने वाला गीत

    गा नहीं पाऊँगा

    सुनना चाहते हो तो

    आग के गा सकूँगा

    नदी किनारे गीत।

    विक्षिप्त हो चुके हैं मनोभाव

    कोमलता/संवेदना लूटते हैं

    मैं समझता हूँ मनोभाव कमोबेश तुम्हारा

    इसीलिए आग

    नहीं लगा सकता मैं

    नहीं लगा सकता...!

    स्रोत :
    • पुस्तक : इस शहर में तुम्हें याद कर (पृष्ठ 36)
    • रचनाकार : वीरभद्र कार्कीढोली
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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