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24 जून : दो कविता

24 june ha do kawita

तुषार धवल

तुषार धवल

24 जून : दो कविता

तुषार धवल

 

इतिहास वर्तमान है हर पल जिसमें
उसकी खुरों पर हमारी अँगुलियों के निशानों को तुम छू सकते हो
उसकी साँसों के गमकते जंगल की अँधेरी आँखों में   
वही सपनीली टिमटिमाहट तुम अभी भी देख सकते हो
जैसा कि हम छोड़ आए थे उसे तब

समय बीतता कहाँ है? अनिला!  

एक 

आज वही तारीख़ है

वर्तमान ने इस कदर घेर रखा होगा उसे कि इतिहास खोई हुई दुम-सा
उसके विकास के इस वर्तमान का तमग़ा बन चुका होगा।

उसी इतिहास के बंजर टापुओं पर आज कोई लहर
बोतल में बंद एक चिट्ठी एक पुकार एक नाम त्याग गई है  
जो किसी ने दीवानगी में भर कर
अपनी यात्राओं में उसे याद करके कभी फेंका था समंदर में।

जीवन के उद्गार समय में घटित नहीं होते।

वह कौन था जिसने उसे पुकारा था खुले समुद्र की अथाह छाती पर पैर धर कर
वह कौन है जिसका नाम पिये यह बोतल मारी-मारी फिर रही है
वह बंजर टापू इतिहास का यहाँ तैर आया है और  
समय अब अखंडित वर्तमान हो गया है।
इतिहास भी वर्तमान ही है हमेशा उसमें बीज होकर धड़कता हुआ। और अब सब वर्तमान है जो बीतता नहीं है
टिका रह जाता है कलेजे में  
क्षणांश के महागर्भ में फैलता है जीवन

आज वही तारीख़ है  
और पिछली सदी की वही सब प्रेक्षाएँ भूत बन गए बच्चों की तरह मेरे गोल-गोल खेल रही हैं
आज एक पूरा संसार भुजाओं पर उठाए चल रहा हूँ उसी में मस्तिष्क घुसेड़े हृदय डाले चला जा रहा हूँ और
भूत बने ये बच्चे मुझे गोल-गोल घेरे खेलते कूदते मेरे साथ चले जा रहे हैं

गहरी भीड़ में गहरे धँसा हुआ हूँ
पर साक्षी कहता है
तुम अकेले ही हो हमेशा अकेले

कामनाएँ कल्पनाएँ कोमलताएँ     
गहरे आकाश में धुएँ की लकीर छोड़ते चुपचाप चले जा रहे अकेले विमान की तरह
चल रही हैं मेरे साथ काल में  
नाचती उन्हीं भुतहे बच्चों के साथ जैसे मैं नाचता हूँ  
निस्संग!

आज वही तारीख़ है
और तुम्हारे वर्तमान के इतिहास के मेरे वर्तमान में
एकाकी एक खेल ऐसा ही चल रहा है
तुमसे दूर बहुत दूर। 

दो

दूध नहाई एक शाम वहाँ हो रही होगी

तारे सितारे पंखुड़ियाँ
दूध नहाई एक शाम वहाँ हो रही होगी

फ्रेंड्स कॅलीग्स रेलेटिव्स
मार्गेरीटा, सुवानिन ब्लाँ, डिंडोरी, टॅलिस्कर
स्विस चॉकलेट केक्स कॅन्डल्स
मोगरा चम्पा जुही
तोहफ़े चुंबन गर्मजोशियाँ

चाँदनी का वर्क ओढ़ी दंत-पंक्ति अपनी कोमल गुलाबी ज़मीन से उगी खिल रही होगी 
जिसे गुलाबी रुई के पनियाए होंठों के खुलते कपाटों ने झलका दिया होगा
कि जैसे अँधेरे कमरे में अध-खुले किवाड़ से रोशनी ठसक आती है ज़िद करके  
एक लट बिखर आई होगी तुम्हारे गालों पर जिसे तुमने अपनी बाईं कलाई से ठेला होगा कहीं पीछे

आँख मूँदे झील में कंकड़ फेंक रहा हूँ
नहीं जानता वे कंकड़ ही थे या हीरे
बोध भी दुश्चिंताओं का जनक होता है  

आँख मूँदे देखता हूँ
मोमबत्तियाँ फूँक कर बुझा दी गई हैं
तुम्हारे बाएँ हाथ में छुरी है
उसी बाएँ हाथ में जिससे तुमने कभी
चित्र बनाए थे मेरा नाम लिखा था नोट्स लिखे थे
तुम केक काट रही हो
वही रोशनी फिर ज़िद करके अँधेरे कमरे में टहल आती है उन्हीं गुलाबी रुई के पनियाए किवाड़ों से
और यहाँ इस अंतरिक्ष में
एक और मुस्कान उसी रोशनी से नहा उठती है
कंकड़ हीरे सब फेंक रहा हूँ और सुध नहीं है
आँख मूँदे देख रहा हूँ
एक सामूहिक क्लॅपिंग के साथ सब गा रहे हैं
यहीं से शामिल तुममें
मैं भी गाता हूँ
‘हॅप्पी बर्थ डे टू यू...’
दूर गहरे आकाश की गहराती वीथिका में
एक अकेला तारा झिलमिला उठता है

यादों की गुनगुनी रजाई के कोमल फाहों को छूता उसी में लिपटा इस सर्द यात्रा में गुनगुनी आँच से भर जाता हूँ
तुम्हारे वर्तमान के इतिहास के मेरे वर्तमान में
जीवन की गति ऐसी भी होती रहती है
कि जब कुछ नहीं कह पाता तुमसे
अंतरिक्ष में उछाल देता हूँ
तुम्हारे लिए अशेष शुभकामना!  

आज वही तारीख़ है।

                   
स्रोत :
  • रचनाकार : तुषार धवल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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