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वे दिन भी क्या दिन थे

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आइज़क असीमोव

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आइज़क असीमोव

और अधिकआइज़क असीमोव

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा पाँचवी के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    हिंदवी

    घटना महत्त्वपूर्ण थी वरना कुम्मी अपनी डायरी में उसे क्यों लिखती। अपनी डायरी में उसने 17 मई सन् 2155 की रात को लिखा, “आज रोहित को सचमुच की एक पुस्तक मिली है।”

    वह पुस्तक बहुत पुरानी थी। कुम्मी के दादा ने बताया था कि जब वे बहुत छोटे थे तब उनके दादा ने कहा था कि उनके ज़माने में सारी कहानियाँ काग़ज़ पर छपती थीं और पढ़ी जाती थीं। पुस्तकों में पृष्ठ होते थे जिन पर कहानियाँ छपी होती थीं और हर पृष्ठ पढ़ने के पश्चात् दूसरा पृष्ठ पलटकर आगे पढ़ना होता था। सारे शब्द स्थिर रहते थे, चलते नहीं थे जैसे आजकल पर्दे पर चलते हैं।

    रोहित ने कहा था, “कितनी पुस्तकें बेकार जाती होंगी। एक बार पढ़ीं और फिर बेकार हो गईं। अब तो हमारे टेलीविज़न के पर्दे पर न जाने कितनी पुस्तकों की सामग्री आ जाती है और फिर भी यह पुस्तक नई की नई रहती है।”

    कुम्मी ने भी रोहित की हाँ में हाँ मिलाई। फिर पूछा, “तुम्हें वह पुस्तक कहाँ मिलीं?”

    रोहित ने बताया, “अपने घर में। एक पुराना डिब्बा कहीं दबा पड़ा था। उसी को फेंक रहे थे कि उसमें से यह पुस्तक मिली।”

    “इसमें क्या लिखा है?”

    “स्कूलों के बारे में लिखा है।”

    “स्कूल?” कुम्मी ने प्रश्न किया।” उसके विषय में लिखने को है ही क्या? हर विद्यार्थी के घर पर एक मशीन होती है जिसमें टेलीविज़न की तरह का एक पर्दा होता है। रोज़ नियमित रूप उसके सामने बैठकर हमें वह सब याद करना होता है जो वह मशीन हमें बताती है। सारा गृहकार्य करके दूसरे दिन उसी मशीन में डाल देना होता है। हमारी ग़लतियाँ बताकर फिर वह हमें समझाती है। एक विषय पूरा होने पर वही मशीन हमारी परीक्षा लेकर हमें आगे पढ़ाना आरंभ कर देती है...” कहते-कहते कुम्मी थक गई थी। अंत में बोली, “कितना उबाऊ होता है यह सारा स्कूल का काम!”

    रोहित मुस्कुराते हुए उसकी बातें सुन रहा था, “अरे बुद्धू, जैसे स्कूल का वर्णन इस पुस्तक में है, वह इससे भिन्न होता था। इसमें तो उन स्कूलों के बारे में लिखा है जो सदियों पहले होते थे।”

    कुम्मी के मन में कुछ उत्सुकता जगी, बोली, “फिर भी उनके यहाँ मशीन के बने अध्यापक तो होते ही होंगे?”

    कुम्मी को याद आया कि एक बार जब उससे भूगोल में रोज़ वही ग़लतियाँ होने लगी थीं, तो उसकी माँ ने मुहल्ले के अध्यक्ष को बताया था। तब एक आदमी आया था और उसने उस मशीन के पुर्ज़े-पुर्ज़े अलग कर दिए थे। तब उसने मन-ही-मन यह मनाया था कि वह आदमी इस बोर करने वाले अध्यापक को पुनः जोड़ न पाए, तो उसे हमेशा के लिए छुट्टी मिल जाए। लेकिन उस आदमी ने मशीन को फिर से जोड़कर उसकी माँ को बताया था, “लगता है मशीन के भूगोल की चक्की कुछ तेज़ रफ़्तार पर थी, सो आपकी लड़की के लिए उसे समझना कठिन हो गया था। मैंने अब उसकी गति कुछ धीमी कर दी है, सो आशा है अब ठीक रहेगा।”

    और कुम्मी को उसी समय भूगोल का सबक सीखने बैठ जाना पड़ा था। मन-ही-मन वह उस मशीनी-अध्यापक को कोसती रही थी।

    तभी रोहित ने कुम्मी के सोचने के सिलसिले को तोड़ा। बोला, “हाँ, तब अध्यापक तो होते थे परंतु मशीन नहीं, स्त्रियाँ और पुरुष होते थे।”

    “क्या कहा? कहीं कोई स्त्री या पुरुष इतने सारे विषय हमें सिखा सकता है?”

    “क्यों नहीं? वह बच्चों को सारे विषय समझाते थे, गृहकार्य देते थे और प्रश्न पूछते थे। अध्यापक बच्चों के घर नहीं जाते थे बल्कि बच्चे एक विशेष भवन में जाते थे जिसे स्कूल कहते थे।”

    कुम्मी का अगला प्रश्न था, “तो क्या सब बच्चे एक समय में एक जैसी ही चीज़ें सीखते थे?

    “हाँ। एक आयु के बच्चे एक साथ बैठते थे।”

    “लेकिन माँ कहती हैं कि मशीनी अध्यापक हर बच्चे को समझ के अनुसार पढ़ाता है, फिर पुराने ज़माने में यह कैसे संभव होता था?”

    “तब वे लोग इस प्रकार नहीं करते थे। रहने दो, तुम्हारी इच्छा नहीं है तो मैं वह पुस्तक तुम्हें नहीं दूँगा।

    कुम्मी झट बोली, “नहीं नहीं, मैं उसे पढ़ना चाहूँगी कि तब स्कूल कैसे होते थे। कितनी अजीब-अजीब बातें जानने को मिलेगी!”

    इतने में अंदर से माँ की आवाज़ सुनकर कुम्मी बोली, “लगता है सबक का समय हो गया है।”

    रोहित भी उठा और अपने घर की ओर चला गया। कुम्मी अपने घर की ओर चली गई। अंदर मशीन आगे का सबक देने को तैयार थी। मशीन से आवाज़ आनी आरंभ हो गई “आज सबसे पहले तुम्हें गणित सीखना है। कल का होम-वर्क छेद में डालो...”

    कुम्मी ने वैसा ही किया। वह सोच रही थी कि कितने अच्छे होते होंगे वे पुराने स्कूल जहाँ एक ही आयु के सारे बच्चे हँसते, खेलते-कूदते स्कूल जाते होंगे...और पढ़ाने वाले पुरुष और स्त्रियाँ होते होंगे...

    इतने में मशीन से स्वर आना आरंभ हो गया था और पर्दे पर चलते हुए अक्षर एवं अंक आने शुरू हो गए थे।

    और कुम्मी सोच रही थी कि तब स्कूल जाने में कितना आनंद आता होगा, कितने ख़ुश रहते होंगे सारे बच्चे!

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    आइज़क असीमोव

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    स्रोत :
    • पुस्तक : रिमझिम (पृष्ठ 62)
    • रचनाकार : आइज़क असीमोव
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022

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