वक जातक

vak jatak

अज्ञात

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अज्ञात

प्राचीन काल में बोधिसत्व किसी वन में पद्म सरोवर के पास के एक वृक्ष पर वृक्ष-देवता के रूप में निवास किया करते थे। वहाँ पास ही एक छोटा तालाब था, जिसका जल ग्रीष्म ऋतु में बहुत घट जाता था। उस तालाब में मछलियों रहा करती थीं। एक दिन एक बगले ने उन मछिलयों को देखकर मन में सोचा कि इन सबको किसी प्रकार बड़‌काकर खा जाना चाहिए। यह सोचकर वह बहुत ही चिंतित भाव से उस तालाब के किनारे जा बैठा।

मछलियों ने उस बगले को इस प्रकार चिंतित देखकर पूछा—आप ऐसे उदास क्यों हैं? बगले ने उत्तर दिया—मुझे तुम्हीं लोगों की चिंता हो रही है। मछलियों ने पूछा—हमारे लिए कैसी चिंता? बगले ने कहा—इस तालाब का जल सूखकर बहुत घट गया है; यहाँ तुम लोगों को खाने को यथेष्ट नहीं मिलता; गर्मी भी बहुत पड़ने लग गई है। मैं यही सोच रहा हूँ कि अब यहाँ तुम लोगों का कैसे निर्वाह होगा। मछलियों ने कहा—अच्छा तो फिर अब आप ही बतलाइए कि हम लोगों को क्या करना चाहिए। बगले ने कहा—यदि तुम लोग मेरा विश्वास करो, तो एक उपाय हो सकता है। यहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक और सरोवर है। उसमें पाँचों वर्णां के पद्म होते हैं। मैं तुममें से एक-एक को चोंच से पकड़कर बारी-बारी से वहाँ पहुँचा सकता हूँ। मछलियों ने कहा—पृथ्वी के पहले कल्प में लेकर आज तक कभी किसी बगले को मछलियों की रक्षा की चिंता नहीं हुई। कहीं आप एक-एक करके हम सबको खा तो नहीं जाना चाहते हैं? बगले ने कहा—नहीं-नहीं, यदि तुम सब लोग मेरा विश्वास करोगी, तो मैं तुम लोगों को कदापि खाऊँगा। मैंने जिस सरोवर की बात कही है, यदि तुम लोग यह जानना चाहो कि वह सरोवर कहीं है भी या नहीं, तो तुम अपने में से एक मछली मेरे साथ कर दो। वह आप चलकर अपनी आँखों से देख आवे। इस पर मछलियाँ एक बड़े काने मच्छ को ले आई और बोली—आप इसी को अपने साथ ले जाइए। मछलियों ने सोचा था कि इस बगले से यह मच्छ जल या स्थल में कहीं उठ सकेगा। पर बगला उस मच्छ को उठाकर पास के एक बड़े सरोवर में ले गया। वहाँ उस सरोवर में उसे छोड़कर उसने दिखा दिया कि सरोवर कितना लंबा चौड़ा है; और फिर उसे लाकर उन्हीं मछलियों में छोड़ दिया। उस काने मच्छ ने सब मछलियों में उस नए सरोवर की बहुत प्रशंसा की। अब मछलियाँ उस सरोवर में जाने के लिए आतुर होने लगीं और बगले से बोली—आपने हम लोगों को बहुत ही अच्छा उपाय बतलाया है। अब आप हम लोगों को उसी बड़े सरोवर में ले चलिए।

बगला सबसे पहले उसी काने मच्छ को लेकर चला। उस सरोवर के पास पहुँचकर पहले तो उसने उसको जल दिखलाया और फिर उसके किनारे के एक वरुण वृक्ष पर उतरकर उसका मांस खा लिया और उसके काँटे आदि उसी वृक्ष की जड़ में फेंक दिए। तब फिर वह पहले वाले तालाब पर गया और मछलियों से बोला—मच्छ को मैं उस सरोवर में छोड़ आया। अब तुममें से और जिसे चलना हो, वह चले। इस प्रकार वह एक-एक करके सब मछलियों को ले जाने लगा और वह तालाब मछलियों से ख़ाली हो गया। अंत में उसमें केवल एक केकड़ा रह गया। बगले ने उसे भी खाना चाहा; इसलिए कहा—मैं सब मछलियों को ले जाकर पद्मों से भरे हुए सरोवर में रख आया हूँ। चलो, तुम्हें भी वहीं पहुँचा दूँ। केकड़े ने पूछा—मुझे तुम किस प्रकार ले चलोगे? बगले ने कहा—चोंच में पकड़कर। केकड़े ने कहा—नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। यदि तुम मुझे कहीं मार्ग में ही फेंक दोगे, तो मेरी हड्डी पसली चूर-चूर हो जाएगी। मैं तुम्हारे संग जाऊँगा। बगले ने कहा—नहीं, तुम घबराओ मत। मैं तुमको बहुत अच्छी तरह पकड़े रहूँगा। केकड़े ने सोचा—जान पड़ता है कि इस धूर्त बगले ने उन मछलियों को पानी में नहीं छोड़ा है। देखूँ, मेरे साथ यह क्या करता है। यदि यह मुझे ले चलकर जल में छोड़ दे, तब तो ठीक ही है। पर यदि यह मुझे जल में छोड़ेगा, तो मैं भी इसकी गर्दन काट डालूँगा। यह सोचकर उसने बगले से कहा—देखो भाई, तुम मुझे अच्छी तरह पकड़े रह सकोगे। पर मैं केकड़ा हूँ। मैं तुमको बहुत अच्छी तरह पकड़े रह सकूँगा। यदि तुम मुझे अपना गला पकड़ने दो, तो मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूँ।

केकड़े की चाल बगले की समझ में आई और उसने उसकी बात मान ली। केकड़े ने बगले की गर्दन पर बैठकर बहुत अच्छी तरह उसका गला पकड़ लिया और कहा—अच्छा, अब चलो। बगले ने पहले तो उसे ले जाकर वह सरोवर दिखलाया और तब वह उसे उस वृक्ष की ओर ले चला।

केकड़े ने कहा—क्यों भाई, सरोवर तो इधर है। तुम मुझे उधर क्यों ले चल रहे हो? बगले ने बिगड़कर कहा—मैं क्या तेरा नौकर था जो तुझे इतनी दूर तक अपनी गर्दन पर बैठाकर लाया? इस वरुण वृक्ष के नीचे काँटों का जो ढेर लगा है, वह तुझे दिखाई नहीं देता? मैंने जिस प्रकार सब मछलियों को खा डाला है, उसी प्रकार तुझे भी खा जाऊँगा। यह सुनकर केकड़े ने कहा—मछलियाँ मूर्ख थीं, इसीलिए तुम उनको खा गए। पर मुझे तुम खा सकोगे। मुझे खाना तो दूर रहा, अब तुम स्वयं ही नहीं बच सकते। मैंने तुमको जिस प्रकार छला, वह तुम्हारी समझ में नहीं आया। मैं तुम्हारा गला काटकर यहीं भूमि पर फेंक दूँगा। इतना कहकर वह ज़ोर से बगले का गला दबाने लगा। पीड़ा के मारे बगले ने मुँह खोल दिया और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने केकड़े से कहा—भाई, मैं तुमको नहीं खाऊँगा। तुम कृपाकर मेरे प्राण छोड़ दो।

केकड़े ने कहा—यदि तुम अपने प्राण बचाना चाहते हो, तो सरोवर के किनारे चलो और वहाँ मुझे जल में छोड़ दो। इस पर बगला फिर सरोवर की ओर बढ़ा और केकड़े के कहने के अनुसार उसने उसे वहाँ कीचड़ में छोड़ दिया। लेकिन केकड़े ने जल में गिरने से पहले ही सफ़ाई से बगले का गला काट डाला था। वरुण वृक्ष पर बैठे हुए उसके अधिदेवता बोधिसत्व ने यह विलक्षण व्यापार देखकर केकड़े को बहुत साधुवाद दिया और मधुर स्वर से एक गाथा कही, जिसका आशय इस प्रकार था—

जो मनुष्य सदा दूसरों के साथ छल किया करता है, वह सुखी नहीं रह सकता। यह वंचक बगला इस केकड़े के काटने से किस प्रकार मरकर नरक गया है!

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