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काक जातक

kaak jatak

अज्ञात

अन्य

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अज्ञात

काक जातक

अज्ञात

और अधिकअज्ञात

    प्राचीन काल में वाराणसी के राजा ब्रह्मदत्त के समय में बोधिसत्व समुद्र देवता थे। एक बार एक कौवा अपनी स्त्री के साथ आहार ढूँढ़ने के लिए समुद्र तट पर गया था। उस समय कुछ लोग समुद्र तट पर खड़े होकर क्षीर, पायस, मत्स्य मांस, सुरा आदि से नाग की पूजा कर रहे थे। कौवे और उसकी स्त्री ने उसी पूजा के स्थान पर पहुँचकर ख़ूब क्षीर, पायस और मांस आदि खाया और सुरा पीकर वे दोनों बहुत मत्त हो गए। उसी सुरा के मद में वे दोनों समुद्र में क्रीड़ा करने लगे और समुद्र की तरंगों में नहाने लगे। उस समय एक तरंग आकर कौवे की मादा को बहा ले गई और एक बड़ी मछली उस मादा को खा गई। कौवा अपनी स्त्री के वियोग में कातर होकर रोने लगा। उसका विलाप सुनकर बहुत से कौवे वहाँ आकर एकत्र हो गए और उससे रोने का कारण पूछने लगे। उसने कहा—मेरी स्त्री यहाँ तट पर बैठकर स्नान कर रही थी। इतने में वह डूब गई। यह सुनते ही सब कौवे मिलकर रोने लगे। अंत में उन्होंने निश्चय किया कि यह समुद्र बहुत ही तुच्छ है। हम लोग अभी इसका जल निकालकर इसे सुखा डालेंगे और तुम्हारी स्त्री को उसमें से निकाल लेंगे। अब वे सब चोंच से एक-एक बूँद जल उठा उठाकर बाहर फेंकने लगे। समुद्र के खारे जल के कारण जब उनका कंठ सूखने लगता था, तब वे लोग स्थल में बैठकर कुछ विश्राम कर लिया करते थे। इसी प्रकार बहुत दिनों तक चोंच से समुद्र का जल उठाते-उठाते उनके गले में बहुत पीड़ा होने लगी और आँखें लाल हो गई। उन सबको बहुत ही बुरी दशा हो गई। अंत में वे लोग हताश होकर आपस में एक दूसरे से कहने लगे—देखो, हम लोग तो समुद्र में से एक-एक बूँद जल उठाकर बाहर फेंकते हैं। पर ज्यों ही हम लोग एक बूँद जल उठाते हैं, त्यों ही उसके स्थान पर दूसरी बूँद पहुँचती है और उसके स्थान की पूर्ति कर देती है। इसलिए हम लोग इस समुद्र को जलहीन नहीं कर सकते। इसके उपरांत उन लोगों ने नीचे लिखे आशय की गाथा कही—

    खारे जल से मुँह में जलन होने लगी और गला सूखने लगा; पर यह समुद्र ज्यों का त्यों बना रहा।

    उस समय सब कौवे मिलकर उस मरी हुई मादा के रूप का वर्णन कर करके विलाप करने लगे। वे कहने लगे—उसकी दुम कैसी सुंदर थी! उसकी आँखें, उसका शरीर, उसका मधुर कंठरव, सभी बातें मनोहर थीं। उसके ये सब गुण देखकर ही यह चोर समुद्र उसे हरण कर ले गया। कौओं का इस प्रकार का विलाप सुनकर समुद्र देवता एक बहुत ही भैरव रूप धारण करके उनके सामने पहुँचे। वह विकराल रूप देखते ही सब कौवे भाग गए जिससे उनके भी प्राण बच गए। (नहीं तो वे भी समुद्र की तरंगों में डूब जाते।)

    स्रोत :
    • पुस्तक : जातक कथा-माला, पहला भाग (पृष्ठ 173)
    • प्रकाशन : साहित्य-रत्नमाला कार्यालय

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