नागमती वियोग (सत्रह)

nagamti wiyog (satrah)

मलिक मोहम्मद जायसी

मलिक मोहम्मद जायसी

नागमती वियोग (सत्रह)

मलिक मोहम्मद जायसी

कुहुकि कुहुकि जसि कोइलि रोई। रकत आँसु घुंघुची बन बोई॥

पै कर मुखी नैन तन राती। को सिराव बिरहा दु:ख ताती॥

जहँ जहँ ठाढ़ि होइ बनबासी। तहँ तहँ होइ घुंघुचिन्ह कै रासी॥

बुंद बुंद महँ जानहुँ जीऊ। कुंजा गुंजि करहिं पिउ पिऊ॥

तेहि दु:ख डहे परास निपाते। लोहू बूड़ि उठे परभाते॥

राते बिंब भए तेहि लोहू। परवर पाक फाट हिय गोहूँ॥

देखि जहाँ सोइ होइ राता। जहाँ सो रतन कहै को बाता॥

ना पावस ओहि देसरें ना हेवंत बसंत।

ना कोकिल पपीहरा केहि सुनि आवहि कंत॥

वह कोयल की भाँति कुहक-कुहक कर रोई। रक्त के आँसुओं से मानो उसने घुंघचियाँ वन में बो दीं। उसका मुँह बुझकर काला हो गया, पर नेत्र और शरीर लाल अंगारे की तरह दहकते रहे। जो विरह-दुःख में जलता है, उसे कौन बुझा सकता है? वन में रहती हुई वह जहाँ-जहाँ खड़ी हो जाती, वहीं वहीं घुंघचियों का ढेर लग जाता था, मानो एक-एक बूँद में उसका प्राण टपक रहा था। प्रत्येक कुञ्ज में से ‘पिउ, पिउ' की गूँज उठ रही थी। उसके दुःख से जलकर पलाश बिना पत्ते के हो गए। फिर उसके लोहू में डूबकर (फूलों से लदकर) चमकते हुए उठे। उसी रक्त से बिंबाफल लाल हो गए। उसकी सहानुभूति में परवल पककर पीला हो गया और गेहूँ का हृदय फट गया। जहाँ वह देखती वहीं लाल हो जाता था। इसलिए जहाँ लाल रत्न था उसे कौन पहचान सकता है?

स्रोत :
  • पुस्तक : पदमावत (पृष्ठ 361)
  • रचनाकार : मलिक मोहम्मद जायसी
  • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
  • संस्करण : 2007
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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