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नखशिख (आठ)

nakhshikh (ath)

मलिक मोहम्मद जायसी

अन्य

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और अधिकमलिक मोहम्मद जायसी

    पुनि बरनौं का सुरंग कपोला। एक नारँग के दुओ अमोला॥

    पुहुप पंक रस अंब्रित साँधे। केइँ ये सुरंग खिरौरा बाँधे॥

    तेहि कपोल बाएँ तिल परा। जेईं तिल देख सो तिल तिल जरा॥

    जनु घुँघुची वह तिल करमुहाँ। बिरह बान साँधा सामुहाँ॥

    अगिनि बान तिल जानहुँ सूझा। एक कटाख लाख दुइ जुझा॥

    सो तिल काल मेंटि नहिं गएऊ। अब वह गाल काल जग भएऊ॥

    देखत नैन परी परिछाहीं। तेहितें रात स्याम उपराहीं॥

    सो तिल देखि कपोल पर आँगन रहा धुव गाड़ि।

    खिनहि उठे खिन बूड़ै डोलै नहिं तिल छाँड़ि॥

    पद्मावती के लाल कपोल का क्या वर्णन करूँ, मानो एक नारंगी के दो अनमोल खंड हैं। पुष्पों के पराग और अमृत के रस को सानकर किसने ये कत्थे की सुरंग टिकियाँ बाँधी हैं? उसके बाएँ कपोल पर तिल है। जो वह तिल देखता है उसके शरीर के तिल-तिल में आग लग जाती है। मानो घुँघची उसी तिल से कलमुँही बनी है। वह तिल सीधा सामने की ओर ताना हुआ विरह बाण है। वह तिल अग्निबाण-सा दिखाई देता है। एक कटाक्ष से लाख दो लाख जूझ जाते हैं। वह काला तिल गाल से मिटाया नहीं गया। अब वही गाल संसार के लिए काल रूप हो गया है। नेत्रों ने जैसे ही गाल के उस तिल को देखा, उनमें उसकी परछाई पड़ गई। इसी से वे भीतर काले और ऊपर लाल दीख पड़ते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पदमावत (पृष्ठ 106)
    • रचनाकार : मलिक मोहम्मद जायसी
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

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