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तुम मुझे लौटा रहे उपहार

tum mujhe lauta rahe uphaar

इति शिवहरे

अन्य

अन्य

इति शिवहरे

तुम मुझे लौटा रहे उपहार

इति शिवहरे

और अधिकइति शिवहरे

    तुम मुझे लौटा रहे उपहार, 

    इससे क्या मिलेगा?

    चित्र तो लौटा दिए चलचित्र के छलछंद का क्या?

    पुष्प लेकर गए हो किंतु उसकी गंध का क्या?

    चिट्ठियाँ मसिमय रही हैं, शब्दमय कुछ भी नहीं था?

    क्या घड़ी ही दी तुम्हें, मेरा समय कुछ भी नहीं था?

    दो क़लम या सूखते कचनार,

    इससे क्या मिलेगा?

    बाँह से तुम नाम मेरा, द्वार से पद-छाप धोते।

    इन सभी से आत्मा के चिह्न थोड़ी नष्ट होते!

    वृक्ष पर बाँधे गए धागे नहीं विश्वास भी थे।

    याद होगा कुछ इन्हीं में निर्जला उपवास भी थे।

    मत करो मृदु-भाव का व्यापार,

    इससे क्या मिलेगा?

    मुद्रिका देकर भला क्या बंधनों से मुक्त होगे!

    जो तुम्हारी उँगलियों में स्पर्श मेरा, दे सकोगे?

    दे सको तो भावनाओं के मुझे भग्नाँश दे दो!

    तुम मुझे मेरा वही निश्छल, छलित हृदयाँश दे दो

    दी विदा में मूर्ति हृदयाकार,

    इससे क्या मिलेगा?

    स्रोत :
    • रचनाकार : इति शिवहरे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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