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तुम बढ़ो आगे, जिसे चाहो

tum baDho aage, jise chaho

इति शिवहरे

अन्य

अन्य

इति शिवहरे

तुम बढ़ो आगे, जिसे चाहो

इति शिवहरे

और अधिकइति शिवहरे

    तुम बढ़ो आगे, जिसे चाहो,

    करो अब अनुगमन है।

    यह मिलन, अंतिम मिलन है!

    किस तरह की भेंट यह, अलगाव देकर जा रही है!

    यह तुम्हारी गति हमें, ठहराव देकर जा रही है।

    तुम लाना आँख में पानी, हमारा मन जलेगा।

    टूटता अनुबंध है, अनुराग कुछ दिन तो छलेगा।

    स्वप्न की मृत देह पर से,

    जागरण का अवतरण है।

    यह मिलन अंतिम मिलन है!

    जब कि पहनाने अँगूठी हाथ माँगोगे कभी तुम।

    या रजत नूपुर किसी के पाँव बाँधोगे कभी तुम।

    याद आएगा 'कुशा' की मुद्रिका भर चाहती थी।

    एक पगली 'दूब' की पायल पहनकर नाचती थी।

    एक मन से ही किसी का,

    निर्गमन है, आगमन है।

    यह मिलन अंतिम मिलन है।

    क्या हुआ जो दे पाए प्रेम, ये ही सोच लेंगे।

    वृक्ष सब देते छाया, और कुछ तो धूप देंगे।

    प्रार्थना कुछ कर पाईं, याचना कर क्या मिलेगा?

    लो विदाई हर्षमय तुम , दुख मनाकर क्या मिलेगा?

    सोचना क्या, यह बिछड़ना,

    और मिलना तो चलन है।

    यह मिलन अंतिम मिलन है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : इति शिवहरे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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