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कुंडली तो मिल गई है

kunDli to mil gai hai

इति शिवहरे

अन्य

अन्य

इति शिवहरे

कुंडली तो मिल गई है

इति शिवहरे

और अधिकइति शिवहरे

    कुंडली तो मिल गई है,

    मन नहीं मिलता, पुरोहित!

    क्या सफल परिणय रहेगा?

    गुण मिले सब जोग वर से, गोत्र भी उत्तम चुना है।

    ठीक है कद, रंग भी मेरी तरह कुछ गेंहुआ है।

    मिर्च मुझ पर माँ जाने क्यों घुमाये जा रही है?

    भाग्य से है प्राप्त घर-वर, बस यही समझा रही है।

    भानु, शशि, गुरु, शुभ त्रिबल, गुण-दोष,

    है सब-कुछ व्यवस्थित,

    अब प्रति-पल भय रहेगा?

    रीति-रस्मों के लिए शुभ लग्न देखा जा रहा है।

    क्यों अशुभ कुछ सोचकर, मुँह को कलेजा रहा है?

    अब अपरिचित हित यहाँ मंतव्य जाना जा रहा है।

    किंतु मेरा मौन 'हाँ' की ओर माना जा रहा है।

    देह की हल्दी भरेगी,

    घाव अंतस के अपरिमित?

    सर्व मंगलमय रहेगा?

    क्या सशंकित मांग पर सिंदूर की रेखा बनाऊँ?

    सात पग भर मात्र चलकर साथ सदियों का निभाऊँ?

    यज्ञ की समिधा लिए फिर से नए संकल्प भर लूँ?

    क्या अपूरित प्रेम की सद्भावना उत्सर्ग कर दूँ?

    भूलकर अपना अहित-हित,

    पूर्ण हो जाऊँ समर्पित?

    ये कुशल अभिनय रहेगा!

    क्या सफल परिणय रहेगा?

    स्रोत :
    • रचनाकार : इति शिवहरे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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