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सहज सरल करना चाहे थे

sahj saral karna chahe the

चित्रांश वाघमारे

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चित्रांश वाघमारे

सहज सरल करना चाहे थे

चित्रांश वाघमारे

और अधिकचित्रांश वाघमारे

    सहज सरल करना चाहे थे

    गीत और जीवन दोनों ही

    एक छोर पर जीवन ठहरा

    एक छोर पर गीत बंध गया

    जब-जब जीवन उलझा तब तब

    मैंने देखा गीत सध गया

    बार-बार पीड़ाएँ गाना

    पर किसको अच्छा लगता है

    करते रहते पीड़ाओं के

    कितने आवर्तन दोनों ही॥

    प्राण देह में बसे हुए हो

    प्राणों में कुछ सार हो तो

    अपने को अपना कह पाए

    इतना भी अधिकार हो तो

    आसमान भी दिखता हो पर

    पिंजरे का ही द्वार बंद हो

    बेमानी लगने लगते तब

    मुक्ति और बंधन दोनों ही॥

    किसको आगे क्या करना है

    बोध होता प्रथम चरण में

    चंद्रगुप्त जन्मे कुटिया में

    बुद्ध जन्मते राजभवन में

    चंद्रगुप्त सम्राट हो गए

    और बुद्ध ने भिक्षा माँगी

    उसी समय समकक्ष हो गए

    कुटिया और भवन दोनों ही॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : चित्रांश वाघमारे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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