Font by Mehr Nastaliq Web

सपने की खोज

sapne ki khoj

एक राजा को पहली रानी से कोई संतान नहीं हुई तो उसने दूसरा विवाह किया। दूसरी रानी के दो बेटे हुए। गद्दी के उत्तराधिकारी विहीन रहने से सब ख़ुश थे। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है दूसरी रानी के दो बेटे होने के बाद पहली रानी ने भी एक बेटे का जन्म दिया। इससे अंतहीन समस्या पैदा हो गई। छोटी रानी को भरोसा था कि उसके बेटे ही राज्य का भोग करेंगे। पर अब उसके मन में संदेह हुआ कि संभवतः राजा पहली रानी के बेटे को प्राथमिकता दे। उसने येन-केन-प्रकारेण राजा को इस बात के लिए राजी किया कि वह पहली रानी और उसके बेटे को कहीं दूर भेज दें। सो राजा ने बड़ी रानी को अलग जागीर और महल देकर राजधानी से दूर भेज दिया।

एक रात राजा ने एक सपना देखा। उस सपने का अर्थ वह समझ नहीं पाया। सपने में उसने सोने का तेंदुआ, सोने का साँप और सोने का बंदर देखा। सपने में तीनों स्वर्ण पशु नाच रहे थे। राजा सपने के अर्थ का कुछ अनुमान लगा सका तो उसने छोटी रानी और उसके दोनों बेटों को बुलवाया और उनसे सपने का अर्थ पूछा। वे भी सपने का अर्थ नहीं समझ पाए। जाने क्यों छोटे राजकुमार को यह लगा कि उसका सौतेला भाई सपने का अर्थ बता सकता है। यह बात उसने पिता को बताई। सो राजा ने बड़ी रानी के बेटे को बुलवाया। सपना सुनकर उसने कहा, “इस सपने की यह व्याख्या है : तीन स्वर्ण पशु हम तीन भाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं, हम आप के लिए स्वर्ण के समान जो हैं। इस सपने के द्वारा भगवान आप को सतर्क करना चाहते हैं ताकि हम भविष्य में झगड़ें नहीं। हम तीनों सिंहासन के उत्तराधिकारी नहीं हो सकते। तीनों में से एक के उत्तराधिकारी बनते ही हममें झगड़ा होना निश्चित है। इस सपने का संदेश यह है कि हममें से जो सोने के तेंदुए, सोने के साँप और सोने के बंदर को ढूँढ़कर उन्हें प्रजा के सामने नृत्य कराएगा वही राज्य का अधिकारी होगा।” इस टीका से राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने तीनों बेटों से कहा कि वह उसी को युवराज घोषित करेगा जो यह कर दिखाएगा। इसके लिए उसने उन्हें एक बरस का समय दिया।

राजा के पास से आकर छोटी रानी के बेटों ने मंत्रणा की और इस नतीजे पर पहुँचे कि सपने के प्राणियों को खोजने की कोशिश व्यर्थ है। अगर सुनार से स्वर्ण पशु बनवा भी लें तो उन्हें नचाएँगे कैसे!

बड़ी रानी का बेटा लौटकर माँ के पास गया और उसे सारी बात बताई। माँ ने कहा कि वह हिम्मत हारे। उसे स्वर्ण पशु अवश्य मिलेंगे। वह पास के जंगल में जाए और गोसाईं से मिले। वे उसे कोई कोई रास्ता अवश्य बताएँगे।

सो राजकुमार गोसाईं से मिलने के लिए चल पड़ा। कई दिन चलने के बाद वह एक घने जंगल में पहुँचा। वहाँ इधर-उधर भटकते हुए उसने रात को कहीं दूर आग जलती देखी। राजकुमार आग के पास गया और बैठकर चिलम सुलगाई। गोसाईं पास ही सो रहा था। तंबाकू की गंध से उसकी आँख खुल गई। वह उठ बैठा और पूछा कि वह कौन है?

“चाचा, मैं हूँ, आप का भतीजा।”

“सच, तुम हो, मेरे भतीजे? इतनी रात को कहाँ से रहे हो?”

“घर से चाचा!”

“अचानक मेरी याद कैसे आई? पहले तो तुम कभी नहीं आए! कोई विशेष बात दिखती है! सब ठीक तो हैं न?”

“सब ठीक हैं। चिंता की कोई बात नहीं। माँ ने कहा कि सोने का तेंदुआ, सोने का साँप और सोने का बंदर खोजने में आप मेरी सहायता कर सकते हैं।”

वैष्णव योगी ने उसे सहायता का वचन दिया और पानी से भरी हंडिया आग पर रखी। हंडिया में उसने केवल तीन चावल डाले। पर थोड़ी देर बाद जब उसने हंडिया उतारी तो उसमें दोनों के खाने के लिए पर्याप्त भात था। भोजन करने के बाद गोसाईं ने कहा, “वत्स, मैं तुम्हें ठीक-ठीक नहीं बता सकता कि तुम्हें क्या करना चाहिए। वन में थोड़ा और आगे जाओगे तो तुम्हें मेरा, छोटा भाई मिलेगा। वह तुम्हें बता सकेगा कि सोने के प्राणी कहाँ मिलेंगे।”

अगले दिन सुबह राजकुमार चल पड़ा। दो दिन बाद वह दूसरे गोसाईं के पास पहुँचा और उसे बताया कि वह क्या चाहता है। उसकी बात सुनकर गोसाईं ने आग पर हंडिया रखी और उसमें दो चावल डाले। जब वे पक गए तो वे दोनों के लिए काफ़ी थे। खाना खाने के बाद गोसाईं ने कहा कि वह नहीं बता सकता कि स्वर्ण पशु कहाँ मिलेंगे। मेरे छोटे भाई के पास जाओ, वह जानता है। अगले दिन सुबह राजकुमार फिर यात्रा पर निकल पड़ा। दो दिन बाद वह तीसरे गोसाईं के पास पहुँचा। तीसरे वैष्णव योगी ने भी हंडिया आग पर रखी और पानी उबलने पर उसमें केवल एक चावल डाला। थोड़ी देर बाद जब उसने हँड़िया उतारी तो उसमें दोनों के लिए पर्याप्त भात था।

सुबह गोसाईं ने राजकुमार से कहा कि वह लुहार से बारह मन लोहे की एक एढाल बनाकर लाए। ढाल का किनारा इतना पैना हो कि उस पर पत्ता भी गिरे तो कट जाए। राजकुमार लुहार के पास गया और ढाल बनवाकर ले आया। ढाल को परखने के लिए गोसाईं ने उसे पेड़ के नीचे खड़ा गाड़ा और राजकुमार से पेड़ पर चढ़कर कुछ पत्ते गिराने को कहा। राजकुमार पेड़ पर चढ़ा और डालियों को खिलाया। पर एक पत्ता भी नीचे नहीं गिरा। यह देखकर गोसाईं पेड़ पर चढ़ा और हौले से पेड़ को हिलाया। पत्तों की बरसात-सी हो गई। जितने पत्ते ढाल के किनारे पर गिरे उनके दो टुकड़े हो गए। गोसाईं संतुष्ट हो गया कि ढाल वैसी ही है जैसी वह चाहता था।

फिर गोसाईं ने उससे कहा कि जंगल में थोड़ा आगे बाँस के घर में साँप का एक जोड़ा रहता है। उनके एक बेटी है। उसे वे कभी घर से बाहर नहीं जाने देते। राजकुमार ढाल को दहलीज़ के पास खड़ी गाड़ दे और ख़ुद पेड़ पर छुप जाए। नाग-नागिन बाहर आएँगे तो उनके टुकड़े हो जाएँगे। इसके बाद वह उनकी बेटी से मिले। वह उसे स्वर्ण पशुओं का ठिकाना बताएगी। राजकुमार चल पड़ा। दुपहर को वह बांस के घर तक पहुँच गया। गोसाईं के कहे अनुसार उसने ढाल को दहलीज़ के पास गाड़ दिया। शाम को घर से निकलने की कोशिश में नाग-नागिन के टुकड़े-टुकड़े हो गए। थोड़ी देर बाद नागकन्या बाहर आई। उसका सौंदर्य देखकर राजकुमार चकित रह गया। वह तेज़ी से उसके पास गया और उससे बात करने लगा। आन की आन में वे एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। राजकुमार ने उसे ढाढस बँधाया। नागकन्या जल्दी ही माँ-बाप की मौत का दुख भूल गई। राजकुमार भी उसके साथ बाँस के घर में रहने लगा।

नागनंदिनी ने उसे सख़्त हिदायत दी कि वह घर के दक्षिण और पश्चिम की तरफ़ कभी जाए। पर एक दिन राजकुमार अपने को रोक सका और घूमता हुआ पश्चिम की ओर निकल गया। वह कुछ ही दूर गया होगा कि उसने सोने के तेंदुओं को नाचते हुए देखा। उन पर नज़र पड़ते ही राजकुमार भी सोने का तेंदुआ बन गया और उनके साथ नाचने लगा। नागकन्या को शीघ्र ही इसका पता चल गया। वह उसे अपने साथ घर लेकर आई और वापस मनुष्य बना दिया। कुछ दिन बाद राजकुमार दक्षिण दिशा की ओर गया। उस तरफ़ तालाब के किनारे उसने सोने के साँप नाचते देखे। उन पर नज़र पड़ते ही वह सोने का साँप बनकर नाचने लगा। फिर नागकन्या उसे घर लाई और वापस मनुष्य बनाया। पर राजकुमार बाज नहीं आया। इस बार वह दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर गया। वहाँ उसने बरगद के नीचे सोने के बंदर को नृत्य करते देखा। उन पर नज़र पड़ते ही वह सोने का बंदर बनकर उनके साथ नृत्य करने लगा। फिर नागकन्या उसे घर लाई और उसे वापस मनुष्य बनाया।

एक दिन राजकुमार ने कहा कि अब उसे घर लौटना चाहिए। नागकन्या ने उससे पूछा कि वह किस काम से आया था। तब राजकुमार ने उसे राजा के सपने के बारे में बताया।

नागनंदिनी चिल्लाई “फिर मेरा क्या होगा? तुमने मेरे माँ-बाप को मार डाला, मुझे भी मार डालो। मैं यहाँ अकेली कैसे रहूँगी!”

“मैं तुम्हें क्यों मारूँगा भला! तुम्हें मैं अपने साथ ले जाऊँगा।” यह सुनकर नागकन्या की बाँछें खिल गई। राजकुमार ने उससे पूछा कि वह स्वर्ण पशुओं को अपने साथ कैसे ले जा सकता है। अब तक तो उसने उन्हें सिर्फ़ देखा ही है। नागकन्या ने कहा कि अगर वह वचन दे कि वह कभी उससे दूर नहीं रहेगा और कभी दूसरी शादी करेगा तो जब ज़रूरत होगी स्वर्ण पशु बना देगी। राजकुमार ने क़सम खाई कि वह उसे कभी अपने से अलग नहीं करेगा। फिर वे राजकुमार के घर की ओर चल पड़े।

रास्ते में वह स्थान आया जहाँ तीसरा गोसाईं रहता था। राजकुमार ने नागकन्या को बताया कि उसने गोसाईं को वचन दिया था कि लौटते समय वह उससे मिलेगा और उसे स्वर्ण पशु दिखाएगा। अब वह क्या करे? स्वर्ण पशु तो उसके पास है नहीं! तब नागकन्या ने राजकुमार के उत्तरीय के तीन गाँठें लगाईं और कहा कि जब गोसाईं स्वर्ण प्राणी देखना चाहे तो वह ये गाँठें खोल दे। राजकुमार गोसाईं के पास गया। गोसाईं ने उससे पूछा कि क्या उसे स्वर्ण प्राणी मिले। राजकुमार ने कहा, “मैं निश्चय के साथ तो कुछ नहीं कह सकता, परंतु मेरे उत्तरीय में अवश्य कुछ बंधा हुआ है।” लेकिन जब उसने गाँठें खोलीं तो उनमें मिट्टी का ढेला, ठीकरी और कोयला निकला। राजकुमार ने उन्हें दूर फेंका और नागकन्या से जाकर पूछा कि उसने उसके उत्तरीय में अंटसंट चीज़ें क्यों बाँधी।

नागकन्या ने कहा, “तुम्हारे मन में संदेह था। यदि तुम्हें विश्वास होता तो स्वर्ण प्राणी ढेले, ठीकरी और कोयले में नहीं बदलते।”

वे वहाँ से आगे बढ़े। रास्ते में वे दूसरे गोसाईं के पास रुके। उसने भी स्वर्ण पशु देखने की इच्छा प्रकट की। इस बार राजकुमार ने पूरी आस्था के साथ उत्तरीय की गाँठें खोलीं। और लो, सोने का तेंदुआ, सोने का साँप और सोने का बंदर उपस्थित हो गए! वे वहाँ से आगे बढ़े। रास्ते में पहले गोसाईं को भी स्वर्ण पशु दिखाते हुए वे राजकुमारी की माँ के पास पहुँचे।

नियत दिन से कुछ दिन पहले राजकुमार ने राजा को कहलवाया कि वे एक बड़े मैदान में कुटियाएँ और मंडप बनवाएँ और उसकी माँ के घर से मैदान तक के मार्ग के दोनों तरफ़ आड़ लगवाएँ। तब वह स्वर्ण पशुओं का नृत्य दिखाएगा। राजा ने तत्काल आवश्यक आदेश दे दिए। नियत दिन स्वर्ण प्राणियों का नृत्य देखने के लिए लोग उमड़ पड़े। राजकुमार स्वर्ण प्राणियों के साथ आया और रास्ते की आड़ की ओट में खड़ी नागकन्या ने उनसे नृत्य करवाया। लोग दिन भर मुग्ध होकर उनका नृत्य देखते रहे और शाम को अनिच्छा से घर गए। रात को मंडप और कुटियाएँ सोने की बन गईं। इसके बाद दूसरी रानी और उसके पुत्रों को छोड़कर राजा पहली रानी के पास रहने लगा।

राजकुमार ने नागनंदिनी से धूमधाम के साथ विवाह किया, सिंहासन पर बैठा, न्यायपूर्वक शासन किया और सुख से रहा।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 196)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY