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बड़ा पहाड़-छोटा पहाड़

baDa pahaD chhota pahaD

अन्य

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एक बड़ा पहाड़ था और एक छोटा पहाड़। बड़े पहाड़ को अपने बड़े होने का घमंड था। वह हमेशा छोटे पहाड़ को नीचा दिखाने का प्रयास करता रहता। बड़ा पहाड़ कहता कि वह बड़ा है इसलिए सूरज सबसे पहले उसके पास आता है, वह बड़ा है इसलिए बर्फ़ सबसे पहले उसके पास आती है और वह बड़ा है इसलिए आकाश उससे बातें करता है।

बड़े पहाड़ की ऐसी बातें सुनकर छोटे पहाड़ को बहुत दुख होता। वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना करता कि उसकी भी ऊँचाई बढ़ जाए और वह भी बड़े पहाड़ के बराबर हो जाए। एक बार भगवान बिष्णु ने उसकी प्रार्थना सुन ली और उससे कहा कि मैं तुम्हें एक दिन और एक रात के लिए बड़ा किए देता हूँ। यदि तुम्हें बड़ा होना अच्छा लगे तो मैं तुम्हें सदा के लिए बड़ा कर दूँगा।

विष्णु ने छोटे पहाड़ को एक दिन और एक रात के लिए बड़ा कर दिया। छोटे पहाड़ को बड़ा होकर बहुत अच्छा लग रहा था कि तभी उसने देखा कि अनेक पशु-पक्षी उसके शिखर को छोड़कर नीचे जा रहे हैं। देखते ही देखते उसका शिखर प्रदेश सूना हो गया। थोड़ी देर में शिखर से नीचे आधी दूर तक के पेड़ों ने साथ छोड़ दिया। पेड़ों के साथ छोड़ते ही मिट्टी ढहने लगी और चट्टानें निकल आईं। छोटे पहाड़ को अपना हरा-भरा रूप बदसूरत होता दिखाई दिया। अभी वह कुछ सोच पाता कि उससे बादलों का एक रेला टकराया और छोटा पहाड़ बुरी तरह भीग गया। एक तो उसके ऊपर के पेड़-पौधे नहीं बचे थे और उस पर पानी पड़ जाने के कारण वह ठंड से थरथर काँपने लगा। पहाड़ के काँपते ही पहाड़ पर बचे पशु-पक्षियों में भगदड़ मच गई और वे उसे छोड़-छोड़कर भागने लगे।

कुछ देर में पहाड़ सूना हो गया। वह अभी अपने सूनेपन से जूझ ही रहा था कि उसके शिखर पर बर्फ़ जमनी शुरू हो गई और उसका दम घुटने लगा। छोटे पहाड़ ने सोचा कि यदि यही हाल रहा तो पशु-पक्षी कभी लौटकर उसके पास नहीं आएँगे और वह सदा के लिए अकेला हो जाएगा। उसने एक बार फिर भगवान विष्णु से प्रार्थना की। अब वह वापस छोटा बनना चाहता था।

विष्णु ने उसे फिर से पहले जैसा छोटा बना दिया। उसके शिखर से बर्फ़ पिघल गई, हरियाली और पशु-पक्षी लौट आए। इसके बाद छोटा पहाड़ बड़े पहाड़ के चिढ़ाने पर तो कभी चिढ़ा और कभी दुखी हुआ।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 294)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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