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सौतेली माँ से दूर

sauteli maan se door

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एक गाँव में एक राजा और एक रानी रहते थे। राजा के महल के पास एक नीम का पेड़ था। उस पेड़ पर चिड़िया का एक घोंसला था घोंसले में चिड़िया अपने चिड़वे और अपने बच्चों के साथ रहती थी। एक दिन चिड़िया मर गई। चिड़वा दुख के कारण ‘चीं-चीं, चीं-चीं’ करके उड़ता, मँडराता रहा। रानी को चिड़िया के मरने का बहुत दुख हुआ। चिड़वे का दुख देखकर रानी ने सोचा कि अब वह अपने बच्चों को अकेले पालेगा। किंतु रानी का अनुमान ग़लत निकला।

दूसरे दिन रानी ने देखा कि चिड़वा दूसरी चिड़िया को अपने साथ ले आया। दूसरी चिड़िया ने पहली चिड़िया के बच्चों को घोंसले से नीचे गिरा दिया और स्वयं चिड़वे के साथ उस घोंसले में रहने लगी। चिड़वे ने भी अपनी पहली चिड़िया से उत्पन्न बच्चों का पक्ष नहीं लिया। यह देखकर रानी को लगने लगा कि यदि किसी दिन वह मर जाएगी तो राजा भी दूसरी रानी ले आएगा जो उसके बच्चों को महल से निकाल देगी।

कुछ दिन बाद रानी का स्वास्थ्य बिगड़ गया और उसे लगने लगा कि अब वह नहीं बचेगी। तब उसने अपने बच्चों को बुलाया और कहा कि यदि उनके पिता उनके लिए सौतेली माँ लाएँ तो वे लोग अपनी सौतेली माँ के अत्याचार सहते हुए महल में रहें अपितु वन में जाकर जीवनयापन करें। बच्चों ने कहा कि वे ऐसा ही करेंगे। इसके बाद रानी की मृत्यु हो गई।

दूसरी रानी कुछ दिन बाद रानी का अनुमान सच साबित हुआ। राजा दूसरी रानी ले आया।

दूसरी रानी का व्यवहार पहली रानी के बच्चों के साथ अच्छा नहीं था। पहली रानी के बच्चों को महल से निकाल पाती कि इसके पहले ही रानी के बच्चों ने महल त्याग दिया और वे सौतेली रानी से दूर जंगल में जाकर कोरकुओं के साथ सुखपूर्वक रहने लगे।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 260)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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