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चमेली राजकुमार

chameli rajakumar

अन्य

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एक था राजा। वह जब हँसता था तो उसके शरीर से चमेली की ख़ुशबू फूटती थी।

यह ख़ुशबू कोसों दूर तक फैल जाती थी। इसलिए लोग उसे चमेली राजकुमार कहते थे। लेकिन यह ख़ुशबू तभी फूटती थी जब वह मन से हँसता था। अगर कोई उसके गुदगुदी करता या उसे हँसने के लिए विवश करता तो यह ख़ुशबू नहीं फूटती थी।

चमेली राजकुमार का राज्य छोटा था। वह एक बड़े राजा के अधीन था। उस राजा ने उसकी इस अपूर्व शक्ति के बारे में सुना। इसे राजा ख़ुद देखना चाहता था। सो उसने चमेली राजकुमार को अपने दरबार में तलब किया और हँसने के लिए कहा। पर आदेश से हँसी आए तो कैसे! चमेली राजकुमार ने भरसक चेष्टा की, पर हँसी नहीं आई सो नहीं ही आई। राजा के ग़ुस्से की सीमा रही। उसे लगा कि चमेली राजकुमार उसकी अवज्ञा कर रहा है। उसने चमेली राजकुमार को क़ैद में डाल दिया।

क़ैदख़ाने के ऐन सामने एक अपाहिज की झोंपड़ी थी। वहाँ की रानी उस अपाहिज को जी-जान से चाहती थी। वह रोज़ रात को उससे मिलने आती थी। चमेली राजकुमार खिड़की से उसे आते-जाते देखता था।

“जो हो, उसे क्या!” यह सोचकर चमेली राजकुमार ने किसी से इसकी चर्चा नहीं की। एक रात रानी को आने में देर हो गई। काफ़ी इंतज़ार के बाद वह आई तो मारे ग़ुस्से के अपाहिज अपने ठूँठे हाथ और कटे पाँव से उसे मारने लगा। पर रानी ने चूँ तक नहीं की। वह रुका तो रानी ने कटोरदान खोला और बड़े प्यार से उसके लिए राजसी पकवान परोसे।

थोड़ी देर बाद अपने क्रूर बरताव पर पछताते हुए अपाहिज ने कोमलता से पूछा, “ज़्यादा लगी तो नहीं? बहुत नाराज़ हो?”

रानी ने कहा, “अरे नहीं, उलटे मुझे बहुत मज़ा आया। लगा जैसे चौदहों भुवन के दर्शन हो गए हों।”

अपाहिज की झोंपड़ी के आगे बने छप्पर के नीचे एक ग़रीब धोबी ठंड से गुड़ी-मुड़ी हुआ पड़ा था। उसका गधा खो गया था। पिछले चार-पाँच दिन से वह उसे ढूँढ-ढूँढ़ कर हलकान हो गया था, पर अकारथ। वह निराश हो चला था। रानी की बात सुनकर उसके दिल में आशा का संचार हुआ। “इसने चौदहों लोक देखे हैं तो मेरा गधा भी ज़रूर देखा होगा” यह सोचकर उसने ज़ोर से पूछा, “भली मानुस, क्या तुम्हें कहीं मेरा गधा दिखा?”

चमेली राजकुमार अपनी कोठरी से सब सुन रहा था। धोबी की बात सुनकर उसकी हँसी रोके रुकी। रात के सन्नाटे में उसके ठहाके गूँज उठे। हवा में कोसों दूर तक चमेली की ख़ुशबू घुल गई।

सुबह होने में अभी लगभग डेढ़ पहर की देर थी, लेकिन क़ैदख़ाने के पहरेदार उसी समय भागे-भागे राजा के पास गए और उसे चमेली राजकुमार के हँसने और चारों तरफ़ चमेली की सुवास फैलने की बात बताई। राजा भी सुबह का इंतज़ार कर सका। उसने तुरंत चमेली राजकुमार को महल में बुलवाया। पूछा, “उस दिन मैंने तुमसे इतना कहा, पर तुम नहीं हँसे। अब आधी रात को ऐसा क्या हो गया जो तुम हँसे बिना रह सके?”

चमेली राजकुमार ने बहुत आनाकानी की, पर राजा के बार-बार कहने पर उसे सच बताना पड़ा। पूरी बात सुनकर राजा ने दो आदेश दिए। पहला यह कि चमेली राजकुमार को ससम्मान उसकी राजधानी पहुँचा दिया जाए और दूसरा यह कि रानी को चूने के भट्ठे में फेंक दिया जाए।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 9)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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