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खम्ब-थोइबी

khamb thoibi

चिंखटेल हैव मोइरा राज्य का राजा था। उसके दरबार में पुरेन्व नाम का सरदार था जिसके पुत्र का नाम था खम्ब। खम्ब जब छोटा था तभी उसके पिता पुरेन्च का देहांत हो गया। पिता के मरने के बाद खम्ब अपनी बड़ी बहन खमनु के संरक्षण में रहा।

खमनु एक सरदार के महल में दूध बेचकर पेट पालती थी। वह सरदार राजा चिंखटेल हैव का छोटा भाई चिंखु अखुब था। एक दिन खम्ब किसी काम से अपनी बहन के पास चिंखु अखुब के महल में पहुँचा। वहाँ उसने राजकुमारी थोइबी को देखा। वह चिंखु अखुब की पुत्री थी। उसे थोइबी बहुत अच्छी लगी। थोइबी को भी खम्ब पसंद आया।

जिस प्रकार थोइबी अपनी सुंदरता के लिए चहुंओर विख्यात थी उसी प्रकार खम्ब की वीरता के चर्चे दूर-दूर तक फैल चुके थे। दोनों की जोड़ी आदर्श सिद्ध होती यदि थोइबी के पिता यह संबंध स्वीकार कर लेते।

जब राजा को खम्ब और थोइबी के प्रेम का पता चला तो उसने अपने भाई चिंखु अखुब से कहा कि वह उन दोनों का विवाह कर दे। किंतु चिंखु अखुब अपनी पुत्री का विवाह अपने प्रिय सरदार नोवान के साथ करना चाहता था।

नोवान और चिंखु अखुब ने खम्ब के रास्ते में तरह-तरह की बाधाएँ खड़ी कीं लेकिन खम्ब घबराया नहीं। यहाँ तक कि चिंखु अखुब ने खम्ब को एक पागल हाथी के सामने खड़ाकर दिया और उसे हाथी से लड़ने को कहा। खम्ब ने हाथी का सामना किया और उसे सूँड़ मरोड़कर मार डाला किंतु इस लड़ाई में वह बुरी तरह घायल हो गया। तब राजा चिंखटेल हैव ने थोइबी को खम्ब की सेवा-सुश्रुषा करने के लिए खम्ब के पास भेजा। थोइबी की सेवा से खम्ब शीघ्र स्वस्थ हो गया। यह देखकर नोवान और चिंखु अखुब चिंतित हो गए और उन्होंने खम्ब को मारने के लिए नए प्रपंच रचे। खम्ब की सेवा करने के कारण थोइबी को उसके पिता ने घर से निकाल दिया। आश्रयहीन थोइबी एक बर्मी सरदार की पुत्री के साथ ब्रह्मदेश में रहने लगी। कुछ समय बाद खम्ब ने उसे अपने पास बुला लिया।

इसी दौरान मोइरी राज्य में एक आदमख़ोर बघेरे का आतंक व्याप्त हो गया। तब राजा चिंखटेल हैव ने खम्ब और नोबान को बघेरे को मारने के लिए भेजा। नोवान स्वयं बघेरे के हाथों मारा गया। खम्ब ने अपने मौलिक कौशल और चतुराई से बघेरे को घेरकर मार डाला। राजा ने इस बहादुरी भरे कार्य पर खम्ब की बहुत प्रशंसा की और उसका थोइबी के साथ विवाह करा दिया। इस प्रकार अनेक संघर्षों के बाद खम्ब को जीवनसाथी के रूप में थोइबी प्राप्त हो गई।

(नोट : इस कथा को गाथा के रूप में भी विस्तार से गाया एवं मंचित किया जाता है।)

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 331)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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