Font by Mehr Nastaliq Web

कृतज्ञ जानवर और कृतघ्न आदमी

kritagya janvar aur kritaghn adami

अन्य

अन्य

एक बार एक भला आदमी जंगल से होकर कहीं जा रहा था। प्यास लगने पर वह एक कुएँ पर रुका। यह कुआँ काफ़ी अरसे से काम में नहीं रहा था। कुएँ में झाँकने पर उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं। एक शेर, एक साँप, एक नाई और एक सुनार उसमें गिर गए थे। शेर ने कहा, “दया करके मुझे बाहर निकालो! तुम्हारा यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूँगा।”

भले आदमी ने कहा, “शेर के नाम से ही मेरे रोंगटे खड़े होते हैं। बाहर निकलते ही तुम मुझे खा जाओगे। निश्चित ही तुम्हें भूख लगी होगी।”

शेर ने कहा, “मैं वचन देता हूँ कि तुम्हें कोई नुक़्सान नहीं पहुँचाऊँगा। मेहरबानी करके मेरी मदद करो!”

भले आदमी ने एक मज़बूत बेल उखाड़ी और उसकी सहायता से शेर को बाहर निकाल दिया। शेर ने कहा, “कभी मुझसे मिलने आना। मैं इसी जंगल में रहता हूँ। मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूँ। जाने से पहले तुम्हें छोटी-सी सलाह देता हूँ। कूएँ में जो आदमी हैं उन्हें मत निकालना। दोनों दुष्ट हैं।”

उसके बाद साँप ने उससे बाहर निकालने की विनती की। भले आदमी ने कहा कि उसे साँप से बहुत डर लगता है। इस पर साँप ने भी उससे वादा किया कि वह उसका अहित नहीं करेगा। उसने साँप को बाहर निकाल दिया। जाने से पहले साँप ने उससे कहा कि ज़रूरत पड़ने पर वह उसे अवश्य याद करेगा। साँप ने भी उसे सावचेत किया कि वह नाई और सुनार की मदद करे।

लेकिन जब नाई और सुनार ने उससे उन्हें बाहर निकालने की याचना की तो वह पसीज गया। सोचा, “आख़िर वे भी मेरी तरह आदमी हैं।” और उन्हें भी कूएँ से बाहर निकाल दिया। उन्होंने भले आदमी को बार-बार धन्यवाद दिया और शहर में उनसे मिलने आने को कहा। उसके उपकार के लिए उन्होंने उसे कुछ देने का वचन दिया।

यात्रा से लौटते समय भला आदमी फिर उस जंगल से गुज़रा। वहाँ उसे वह शेर मिला। उसे देखकर शेर बहुत ख़ुश हुआ, उसकी ख़ूब ख़ातिरदारी की और विदाई की वेला उसे हीरे की अंगूठी भेंट में दी।

फिर वह आदमी नाई और सुनार से मिलने शहर गया। वे उससे बहुत अच्छी तरह से मिले, उसकी आवभगत की, पर जब उसने उन्हें हीरे की अंगूठी दिखाई तो उन्होंने चुपके से राजा को इसकी सूचना दे दी। वहाँ की राजकुमारी को शेर ने जंगल में मार डाला था। राजा ने पूरे राज्य में मुनादी करवाई थी कि जो कोई राजकुमारी की मौत का सुराग देगा या उसका कोई गहना लाकर देगा उसे इनाम दिया जाएगा। भले आदमी को मालूम नहीं था कि वह अंगूठी राजकुमारी की है।

नाई वहाँ का कोतवाल था। उसने भले आदमी को जेल में डाल दिया और उसे बहुत मारा। बेचारे ने बहुत कहा कि वह बेक़सूर है। यह अंगूठी उसे एक शेर ने उपहार में दी है। पर ऐसी बात पर कौन पतियारा करता? राजा ने सोचा कि उसी ने राजकुमारी को मारा है। नहीं तो उसके पास अंगूठी कहाँ से आती? राजा ने उसका सर कलम करने का आदेश दे दिया।

कारागार में बंद निराश भले आदमी को उस साँप का ख़याल आया। आन की आन में साँप प्रकट हो गया। बोला, “कहो, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?” भले आदमी ने आपबीती उसे कह सुनाई। साँप ने कहा, “मैंने तुमसे कहा था कि दुष्टों को कूएँ से मत निकालना। ख़ैर, जो हुआ सो हुआ, इस मुसीबत में मैं तुम्हारी मदद करूँगा, जैसे तुमने मेरी मदद की थी। मैं रानी को डसने जा रहा हूँ। तुम राजा को कहलवाना कि तुम उसका इलाज कर सकते हो। बाक़ी मैं संभाल लूँगा।”

रात को ज़हरीले साँप के काटने से रानी बेहोश हो गई। तमाम वैद्य, हकीम और ओझा-गुनी बुलवाए गए, पर रानी की यंत्रणा कम नहीं हुई। सबको लगा कि उसका आख़िरी वक़्त गया है।

अगले दिन जब भले आदमी को मृत्युदंड देने का समय आया तो उसने अपनी अंतिम इच्छा दर्शायी कि वह रानी का उपचार करना चाहता है। उसे अदेर बुलाया गया। उसके रानी के कक्ष में पहुँचते ही उसका मित्र साँप आया और घाव पर मुँह रखकर अपना विष चूस लिया। रानी स्वस्थ हो गई।

राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसका आभार माना। पर उसका क्रोध अब भी पूरी तरह शांत नहीं हुआ था, क्योंकि उसके विचार से उसी ने राजकुमारी की हत्या की थी। भले आदमी ने उसे सारी बात विस्तार से बताई। उसने नाई और सुनार को गवाही के लिए बुलाया कि कैसे उसने उन्हें और साँप और शेर को कूएँ से निकाला था। पर नाई और सुनार ने कहा कि उन्होंने इस आदमी को पहले कभी नहीं देखा। निराश भले आदमी ने सोचा कि काश, शेर यहाँ आता और उसकी बात की पुष्टि करता! इसके यह सोचतें ही शेर शहर में गया। उसके साथ शेरों का बहुत बड़ा झुंड था। उनकी राजसी दहाड़ों से पूरा शहर थर्रा गया। आश्चर्य और भय से सब जड़ हो गए। राजा को विश्वास हो गया कि भला आदमी सच कह रहा है। और लो, अगले ही पल शेर अलोप हो गए।

नाई और सुनार बहुत रोए, गिड़गिड़ाए, पर राजा ने उनकी एक सुनी। भले आदमी के स्थान पर उनके सर धड़ से अलग कर दिए गए।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 290)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए