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साथी की पहचान

sathi ki pahchan

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बहुत समय पहले की बात है उस समय भारिया समुदाय में गोदना गोदवाने की प्रथा नहीं थी। उस समय एक आदमी की मृत्यु हो गई। यमदूत उसके जीव को अपने साथ ले गए। कुछ समय बाद उस आदमी की पत्नी की मृत्यु हुई। यमदूत आए और पत्नी के जीव को भी अपने साथ ले गए। पत्नी यह सोचकर प्रसन्न थी कि अब उसे अपने पति से मिलने का अवसर मिलेगा। उसने यमदूत से विनती की कि वह उसे वहीं ले जाए जहाँ उसके पति का जीव है।

‘तुम अपने पति के जीव को पहचान तो लोगी?’ यमदूत ने पूछा।

‘हाँ, बिलकुल पहचान लूँगी।’ पत्नी ने दावे से कहा।

यमदूत उसे वहाँ ले गया जहाँ उसके पति का जीव था।

‘लो, अब अपने पति के जीव को पहचान कर उससे मिल लो।’ यमदूत ने कहा।

पत्नी ने देखा, वहाँ अनेक जीव थे और सब के सब एक जैसे। उसे समझ में नहीं आया कि उनमें उसके पति का जीव कौन-सा है? उसने यमदूत से मदद माँगी।

‘मुझे तो स्वयं समझ में नहीं आता है कि किसका जीव कौन-सा है। तुमने कहा था कि तुम पहचान लोगी इसलिए मैं तुम्हें यहाँ ले आया। अब मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता हूँ।’ यमदूत ने कहा।

पत्नी बहुत निराश हुई। उसने भगवान शंकर से प्रार्थना की। भगवान शंकर उसकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर प्रकट हुए।

‘मैं तुम्हें तुम्हारे पति के जीव से मिलवा देता हूँ लेकिन तुम्हें मैं इसके बाद वापस पृथ्वी पर भेज रहा हूँ ताकि तुम लोगों को समझाओ कि वे अपने शरीर पर गोदना गोदवाया करें जिससे उनके मरने के बाद उनके जीव को अलग-अलग पहचानने में सुविधा हो सके।’ भगवान शंकर ने कहा।

इसके बाद उन्होंने पत्नी को उसके पति के जीव से मिलवा दिया। अपने पति के जीव से मिलकर पत्नी पुनः पृथ्वी पर लौट आई और लोगों को गोदना गोदवाने का महत्व समझाने लगी। बस, उसी समय से भारिया समुदाय में गोदना गोदाने का चलन प्रारंभ हो गया।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 266)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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