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चोर का बेटा

chor ka beta

अन्य

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एक चोर था जो चोरी करने में निपुण था। जब उसका बेटा बड़ा हुआ तो उसने सोचा कि अपने बेटे को भी चोरी का हुनर सिखा दे। वह उसे अपने साथ ले जाने लगा। वह सोचता था कि उसका बेटा उसे चोरी करते हुए देखकर चोरी करना सीख जाएगा जैसा कि स्वयं उसने अपने पिता से सीखा था। किंतु चोर के बेटे का मन चोरी करने में नहीं लगता था। जब उसका पिता चोरी करता रहता उस समय वह ऊँघने लगता। यह देखकर उसके पिता को बहुत दुख होता कि उसका बेटा कभी अच्छा चोर नहीं बन सकेगा।

एक दिन चोर ने एक किसान के खेत से गेहूँ चुराने की योजना बनाई। उसने अपने बेटे को भी अपने साथ चलने को कहा। बेटे ने कहा कि उसे नींद आने लगती है अतः उसे साथ ले चलें किंतु चोर उसे समझा-बुझा कर अपने साथ ले गया।

खेत में पहुँचकर चोर ने अपने बेटे से कहा कि मैं बालियाँ काटने खेत में घुस रहा हूँ और तुम खेत के बाहर खड़े-खड़े देखते रहना कि कोई तो नहीं रहा है। यदि कोई आता दिखे तो मुझे संकेत कर देना। इस बीच तुम्हें नींद आए इसलिए मैं तुमसे बीच-बीच में बातें करता रहूँगा। इस प्रकार समझाकर चोर खेत में घुस गया।

थोड़ी देर बाद चोर ने अपने बेटे से पूछा, ‘क्यों बेटा कोई आहट तो नहीं मिल रही है?’

‘नहीं मिल रही है।’ बेटे ने कहा।

फिर थोड़ी देर बाद चोर ने पूछा, ‘क्यों बेटा कोई तो नहीं रहा है?’

‘कोई नहीं रहा है।’ बेटे ने कहा।

आज चोर बहुत प्रसन्न था कि उसका बेटा जाग रहा है। बेटे को जगाए रखने का अपना उपाय उसे पसंद आया। फिर थोड़ी देर बाद चोर ने प्रश्न किया, ‘क्यों बेटा, कोई देख तो नहीं रहा है?’

‘हाँ पिता जी, देख रहा है।’ बेटे ने बताया।

अब चोर हड़बड़ा गया। उसने पूछा, ‘कब से?’

‘शुरू से।’ बेटे ने कहा।

यह सुनकर चोर बालियाँ काटनी छोड़कर खेत से बाहर निकल आया। उसने पूछा, ‘कौन देख रहा है? किधर है वह?’

‘जो देख रहा है उधर है वह।’ बेटे ने आकाश की ओर संकेत करते कहा, ‘बापू तुम्हें चोरी करते हुए भगवान देख रहा है।’

बेटे के मुख से यह उत्तर सुनकर चोर की आँखें भर आईं। उसे अपनी ग़लती का अनुभव हुआ और उसने काटी हुई बालियाँ ले जाकर किसान को दे दीं तथा अपना अपराध स्वीकर कर लिया।

‘तुम इन बालियों को ले जाओ। ये तुम्हारे हृदय परिवर्तन का पुरस्कार हैं।’

किसान ने कहा और गेंहूँ की बालियाँ चोर को दे दीं। इसके बाद से चोर ने कभी चोरी नहीं की और अपने पुत्र को चोर बनने के लिए कहा।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 281)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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