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महा अंधकार के बाद

maha andhkar ke baad

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उन दिनों पृथ्वी पर अनैतिकता अपने चरम पर थी। हर प्रकार का दुराचरण अपनाया जा रहा था। इसका कारण था कि लोग अमर हो गए थे। उन्हें अपनी मृत्यु अथवा परलोक का भय नहीं रहा था। अपने अमरत्व के घमंड में चूर होकर वे आपस में लड़ते रहते। मनुष्यों के इस प्रकार पारस्परिक लड़ाई-झगड़े से तंग आकर एक दिन परमात्मा खंजागपा ने विचार किया कि अब संसार के सभी लोगों को मर जाना चाहिए। वे जीवन जीने योग्य नहीं रहे।

परमात्मा खंजागपा ने एक कुत्ते को आदेश दिया कि वह जाकर सूरज को निगल जाए। कुत्ते खंजागपा के आदेश का पालन करते हुए सूरज को निगल लिया जिससे पृथ्वी पर महा अंधकार छा गया। कुछ इंसान सितारों में और कुछ बंदरों में बदल दिए गए। पृथ्वी पर से आग का अस्तित्व भी मिट गया। इस दीर्घकालीन महा अंधकार के कारण सभी मनुष्य मर गए। सिर्फ़ एक भाई और एक बहन जीवित बचे जो सुअर की कठौती को उलटकर उसमें छिपकर बैठे रह गए थे।

कुछ समय बाद कुत्ते ने मल के रूप में सूरज का त्याग किया जिससे सूरज मुक्त हो गया और एक बार फिर चमकने लगा। प्रकाश एवं ताप का उदय होते ही भाई-बहन सुअर की कठौती से बाहर निकल आए।

परमात्मा खंजागपा ने भाई-बहन को आदेश दिया कि वे परस्पर संबंध स्थापित करके मानवजाति की नवीन कड़ी को जन्म दें। भाई-बहन ने खंजागपा के आदेश का पालन किया और वे वर्तमान मानवजाति के प्रथम पूर्वज बने।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 321)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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