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जाड़ौ कैसें कटत बिचारौ

jaDau kaisen katat bicharau

ईसुरी

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ईसुरी

जाड़ौ कैसें कटत बिचारौ

ईसुरी

और अधिकईसुरी

    जाड़ौ कैसें कटत बिचारौ!

    बारौ बलम हमारौ!

    दिन डूबे सें करत बियारी, घर में परत नियारौ॥

    अंदियारी हो सकियाँ पूछें, कहा कहौं सुकचारौ॥

    कात ‘ईसुरी’ सुनलो प्यारी, जुबन उठौ अनियारौ॥

    ठंड का यह मौसम कैसे कटेगा? हमारा पति तो बहुत छोटा है। वह शाम होते ही भोजन कर घर में अलग सो रहता है। अँधी-सी सखियाँ मुझसे ससुराल के सुख चाह पूछती हैं। मैं उनसे क्या कहूँ? अरे ईसुरी! सुनो, प्यारी के अनूठा यौवन फूट पड़ा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 142)
    • संपादक : घनश्याम कश्यप
    • प्रकाशन : शब्दपीठ
    • संस्करण : 1995

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