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रसना काय न राम रस पीती

rasna kay na ram ras piti

ईसुरी

अन्य

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ईसुरी

रसना काय न राम रस पीती

ईसुरी

और अधिकईसुरी

    रसना काय राम रस पीती!

    परबै धार अचीती!

    बिसरी खबर तोय वा दिन की, जा दिन बात कई ती॥

    खट रस भोजन पान करत है, फिर रीती की रीती॥

    ‘ईसुर’ भजन राम कौ करना, जेइ जगत की रीती॥

    अरी जीभ! राम का रस क्यों नहीं पीती? देख, अनंत रस-धार पड़ रही है। तुझे उस दिन की याद भूल गई, जब यह बात कही थी। तू तो षट रस भोजन और पान कर रीती की रीती रहती है। अरे ईसुरी! राम भजन करना ही जगत की सही रीति है!

    स्रोत :
    • पुस्तक : ईसुरी की फागें (पृष्ठ 22)
    • संपादक : घनश्याम कश्यप
    • प्रकाशन : शब्दपीठ
    • संस्करण : 1995

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