Font by Mehr Nastaliq Web

मिडिल क्लास

middle class

प्रतापनारायण मिश्र

अन्य

अन्य

प्रतापनारायण मिश्र

मिडिल क्लास

प्रतापनारायण मिश्र

और अधिकप्रतापनारायण मिश्र

    जो लोग सचमुच विद्या के रसिक हैं उन्हें तो एम० ए० पास करके भी तृप्ति नहीं होती, क्योंकि विद्या का अमृत ऐसा ही स्वादिष्ट है कि मरने के पीछे भी मिलता रहे तो अहोभाग्य! पर जो लोग कुछ क, ख, सीख के पेट के धंधे में लग जाना ही इतिकर्त्तव्यता समझते हैं उनके लिए मिडिल की भी ऐसी छूत लगा दी गई है कि झींखा करें बरसों! नहीं तो इन बेचारे दस-दस रुपया की पिसौनी करनेवालों को कब जहाज़ पर चढ़ के जगज्जात्रा करने का समय मिलता है जो जुगराफिया रटाई जाती है? कौन दिल्ली और लखनऊ के बादशाह बैठे हैं जो अपने पूर्वजों का चरित्र सुनकर ख़िलअत बख्श देंगे, जो तवारीख़ के समय की हत्या की जाती है? साधारण नौकर को लिखना, पढ़ना, बोलना, चालना, हिसाब-किताब बहुत है। मिडिल वाले कोई प्रोफेसर तो होते ही नहीं, इन बेचारे पेटार्थियों को विद्या के बड़े-बड़े विषयों में श्रम कराना मानो चींटी पर हाथी का हौदा रखना है। बेचारे अपने धंधे से भी गए, बड़े विदान् भी भए। 'मिडिल' शब्द का अर्थ ही है अधबिच, अर्थात आधे सरग त्रिशंकु की भाँति लटके रहो, इतके उतके। इससे तो सरकार की मंशा यही पाई जाती है कि हिंदोस्तानी लोग नौकरी की आशा छोड़े, पर इन गुलामी के आदमियों को समझावे कौन?

    यदि प्रत्येक जाति के लोग अपनी संतान को सबसे पहले निजव्यापार सिखलाया करें तो वे नौकरी-पेशों से फ़िर भी अच्छे रहें। इधर नौकरों की कमी रहने से सरकार भी यह हठ छोड़ बैठे। जिनको स्थानेपन में पढ़ने की रुचि होगी वे क्या और धंधा करते हुए विद्या नहीं सीख सकते? पर कौन सुनता है कि व्यापारे बसति लक्ष्मी?” यहाँ तो बाबूगीरी के लती-भाई, कुछ हो, भपनी चाल छोड़ेंगे।

    भगवति विद्ये! तुम क्या केवल सेवा ही कराने को हो? हम तो सुनते हैं, तुम्हारे अधिकारी पूजनीय होते थे? अस्तु, है तो अच्छा ही है। अभागे देश का एक वही लक्षण क्यों रह जाए कि सेवावृत्ति में भी बाधा? जाने, हरसाल खेप की खेप तैयार होती है, इन्हें इतनी नौकरी कहाँ से आवेगी?

    सरकार हमारी सलाह माने तो एक और कोई मिडिल क्लास की पख निकाल दे, जिसके बिना बहरागीरी, खनसामागीरी, ग्रासकटगीरी आदि भी मिले। देखें तो, कब तक नौकरी के पीछे सती होते हैं? अरे बाबा! यदि कमाने पर ही कमर बाँधी है तो घर का काम काटता है? क्या हाथ के कारीगर और चार पैसे के मजूर दस पंद्रह का महीना भी नहीं पैदा करते? क्या ऐसों को बाबुओं के-से कपड़े पहिनना मना है? वरंच देश का बड़ा हित इसी में है कि सैकड़ों तरह का काम सीखो। सर्टिफिकेट लिए बँगले-बँगले मारे-मारे फ़िरने में क्या धरा है जो सरकार को हर साल इमतिहान अधिक कठिन करने की चिंता में फँसाते हो? बाबूगीरी कोई स्वर्णगीरी (सोने का पहाड़) नहीं है। पास होने पर भी सिफ़ारिश चाहिए तब नौकरी मिलेगी, और यह कोई नियम नहीं है कि मिडिलवाले नौकरी से बरखास्त होते हो वा उन्हें बिना फ़िक्र नौकरी मिल ही रहती हो। क्यों, उतना ही श्रम और काम में नहीं करते?

    स्रोत :
    • पुस्तक : सम्मेलन निबंध माला (भाग 2) (पृष्ठ 10)
    • संपादक : गिरिजदत्त शुक्ला व ब्रजबहुषण शुक्ल
    • रचनाकार : प्रतापनारायण मिश्र
    • प्रकाशन : गिरिजदत्त शुक्ला व ब्रजबहुषण शुक्ल

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए