प्रतापनारायण मिश्र के निबंध
धोखा
इन दो अक्षरों में भी न जाने कितनी शक्ति है कि इनकी लपेट से बचना यदि निरा असंभव न हो तो भी महाकठिन तो अवश्य है। जब कि भगवान रामचंद्र ने मारीच राक्षस को सुवर्णमृग समझ लिया था तो हमारी आपकी क्या सामर्थ्य है जो धोखा न खाएँ। वरंच ऐसी-ऐसी कथाओं से विदित