प्रतापनारायण मिश्र के निबंध
धोखा
इन दो अक्षरों में भी न जाने कितनी शक्ति है कि इनकी लपेट से बचना यदि निरा असंभव न हो तो भी महाकठिन तो अवश्य है। जब कि भगवान रामचंद्र ने मारीच राक्षस को सुवर्णमृग समझ लिया था तो हमारी आपकी क्या सामर्थ्य है जो धोखा न खाएँ। वरंच ऐसी-ऐसी कथाओं से विदित
मिडिल क्लास
जो लोग सचमुच विद्या के रसिक हैं उन्हें तो एम० ए० पास करके भी तृप्ति नहीं होती, क्योंकि विद्या का अमृत ऐसा ही स्वादिष्ट है कि मरने के पीछे भी मिलता रहे तो अहोभाग्य! पर जो लोग कुछ क, ख, घ सीख के पेट के धंधे में लग जाना ही इतिकर्त्तव्यता समझते हैं उनके
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere