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जंगम जिय को नास

jangam jiy ko nas

भूधरदास

अन्य

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भूधरदास

जंगम जिय को नास

भूधरदास

और अधिकभूधरदास

    जंगम जिय को नास, होय तब मांस कहावै।

    सपरस आकृति नाम, गंध उर घिन उपजावै॥

    नरक जोग निरदई, खाहिं नर नीच अधरमी।

    नाम लेत तज देत, असन उत्तम कुल करमी॥

    यह गिपट निंद्य अपवित्र अति, कृमिकुल-रास निवास नित।

    आमिष अभच्छ या को सदा, बरजौ दोष दयाल चित्त॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 263)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : भूधरदास
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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